________________ वनस्पति-विज्ञान 232 नीम का पंचांग-रक्तदोष, पित्त, खुजली, वण, दाह और कुष्ठनाशक है। _ विशेष उपयोग ( 1 ) वमन और कुष्ठ पर-नीम का काढ़ा पिलाना चाहिए। (2) सर्पविष में नीम और मसूर की दाल एक साथ पकाकर खानी चाहिए। (3) दुष्टत्रण पर-नीम का तेल लगाना चाहिए। (4) दूध कमकरने के लिए नीम की पत्ती पीसकर और गरम करके स्तनों पर लगानी चाहिए। (5) ज्वर में नीम की छाल का काढ़ा पीएँ। (6) चेचक पर-नीम का पंखा झलना चाहिए। (7) पारी के ज्वर पर-नीम की छाल का काढ़ा पीएँ। (8) पेट के कीड़ों पर-नीम और वायविडंग का काढ़ा पीना चाहिए। (8) सिर की जूं मारने के लिए नीम का तेल लगाना चाहिए। (10) शीतपित्त पर-नीम का तेल लगाना चाहिए / (11) फुन्सियों पर-नीम की छाल घिसकर लगाएँ। (12) शीतज्वर में नीम की अन्तरछाल का काढ़ा पीएँ। (13) बिगड़े हुए फोड़े पर-नीम की पत्ती पीस और गरम करके बाँधनी चाहिए।