________________ फरहद सं० पारिभद्र, हि० फरहद, ब० पालतेमन्दार, म० पानरो, गु०, पांडरेवा, क० हरिवाला, ता० मुराक, तै० वारिदेचेद, और लै० एरिथिर्ना इंडिका-Erythrina Indica. विशेष विवरण-इसका पेड़ जंगल और सड़क के किनारे पाया जाता है / पत्ते ढाक के समान एक-एक डाल में तीन-तीन होते हैं / फूल सफेदी लिए लाल रंग का बड़ा सुन्दर मालूम पड़ता है। इसी पर कलियाँ भी लगती हैं। इनमें सूक्ष्म काँटे होते हैं। इसकी छाल, पत्ते और फल का व्यवहार किया जाता है / इसकी मात्रा दो माशे तक की है / यह सफेद और लाल दो जाति का होता है / सफेद बहुत कम दीख पड़ता है / इसकी लकड़ी हलकी होती है / इसकी लकड़ी का तलवार का म्यान बनता है / सफेद फरहद अधिक गुणोंवाला है। गुण–पारिभद्रः कटूष्णश्च पथ्यश्चाग्निप्रदीपकः / अरोचकः कफकृमिमेहशोफहरः स्मृतः // पुष्पं पित्तरुजं हन्ति कर्णव्याधिं विनाशयेत् / -शा० नि० फरहद-कड़वा, उष्ण, पथ्य, अग्निदीपक तथा अरोचक, कफ, कृमि, प्रमेह और शोथनाशक है / फरहद का फूलपित्त की पीड़ा और कर्णरोगनाशक है। ___विशेष उपयोग (1) कामला में-फरहद की छाल का चूर्ण एक तोला, चावल की धोधन के साथ लेना चाहिए /