________________ 225 बाँस गुण-वेणोर्यवस्तु तुवरो रूक्षश्चमधुरो मतः। पुष्टिकृद्धीर्यकृद्धल्यः कफपितहरो मतः // विषप्रमेहशमनो मुनिभिः परिकीर्तितः।-नि० र० बाँस का चावल--कषैला, रूखा, मधुर, पुष्टिकारक, वीर्यदायक, वल्य तथा कफ, पित्त, विष और प्रमेहनाशक है। विशेष उपयोग (1) मूत्राघात पर-बाँस की राख और मिश्री, चावल के धोअन के साथ मिलाकर पीना चाहिए / (2) पारा के विष पर-चार तोले बाँस के पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पीना चाहिए / (3) रक्तजन्य दाह पर-बाँस की छाल के काढ़े में शहद मिलाकर पीना चाहिए / (4) बहुमूत्र में-बाँस के पत्तों का काढ़ा हर समय पीएँ। (5) बालकों के ऊर्द्धश्वास पर-बाँस की गाँठ जल के साथ घिसकर अथवा बंशलोचन शहद के साथ चाटें। - (6) घाव में कीड़े पड़े हों, तो-बॉस की राख, तिल के तेल के साथ मिलाकर लगानी चाहिए। (7) श्वास में-बाँस और लटजीरा की राख पान के साथ खानी चाहिए।