________________ वनस्पति-विज्ञान 216 (7) रतौंधी में लटजीरा की जड़ एक तोला रात के सोते समय खानी चाहिए। (8) रक्तार्श में-लटजीरा का बीज, चावल की धोधन के साथ पीसकर पीना चाहिए। (8) विचिका में लटजीरा की जड़ पीसकर पीएँ / (10) मासिकधर्म के लिए लटजीरा की जड़ योनि में रखनी चाहिए। (11) उपदंश में-लटजीरा की जड़ का रस चार तोले, छः माशे जीरा का चूर्ण मिलाकर सात दिनों तक पीना चाहिए / (12) शीघ्र प्रसव के लिए रविवार के दिन लटजीरा की जड़ पुष्यनक्षत्र में लाकर कच्चे सूत में बाँधकर कमर या हाथ में बाँधना चाहिए। किन्तु प्रसव के बाद तुरत उसे हटा देना चाहिए / अन्यथा अन्य अंग भी निकल आते हैं। (13) खाँसी और श्वास में-लटजोरा की राख पान के साथ खानी चाहिए। सोनापाग सं० श्योनाक, हि० सोनापाठा, ब० सोनालु, म० टेटु, गुरु मरमट्य, क० शोणा, तै० पेद्दामानु, ता. पन, और. लै० ओरो कसिलं इंडिकम्-Orocylum Indicum.