________________ 215 लटजीरा रूक्षो व्रणं विषं वातं कर्फ कण्डूं च नाशयेत् / बीजमस्य रसे पाके दुर्जरं स्वादु शीतलम् // मलावष्टम्भकं रूक्षं वान्तिकृद्रक्तपित्तजित् / कासनाशकरं प्रोक्तं मुनिभिस्तत्वदर्शिभिः // -नि० र० लाल लटजीरा-थोड़ा कड़वा, शीतल, मलरोधक, वमन और विष्टम्भकारक; रूखा तथा व्रण, विष, वात, कफ और कण्डू नाशक है। लाल लटजीरा का बीज-रस-पाक में दुर्जर, स्वादिष्ट, शीतल, ग्राही, रूखा, छर्घ तथा रक्तपित्त और कासनाशक है / _ विशेष उपयोग (1) बिच्छू के विष पर लटजीरा की जड़ पीसकर लगाना तथा पीना चाहिए / विष उतर जाने पर इसका पानी कड़वा मालूम पड़ता है। . (2) कुत्ता का विष-लटजीरा की जड़ का चूर्ण एक तोला, शहद के साथ चाटना चाहिए; और घीकुवार का गुदा तथा सेंधानमक लगाना चाहिए / . (3) दाँतों के दर्द पर लटजीरा का रस लगाएँ। (4) बहिरेपन पर-लटजीरा की छाल का रस और तिल का तेल एक में पकाकर छोड़ें। (5) आँख आने पर-लटजीरा की जड़ और सेंधानमक दही के पानी के साथ लोहे के वर्जन में घिसकर लगाएँ। (6) आँख की फूली पर लटजीरा की जड़ शहद के साथ घिसकर अंजन देना चाहिए /