________________ 213 अनंतमूल तीता, सुगन्धित तथा कुष्ठ, खुजली, ज्वर, देह की दुर्गन्धि, अग्निमांद्य, श्वास, कास, अरुचि, आम, त्रिदोष, विष, रक्तविकार, प्रदर, कफ, अतीसार, तृषा, दाह, रक्तपित्त और वातनाशक है / गुण-कृष्णा तु सारिवा शीता वृष्या च मधुरा मता / कफनी चैव संप्रोक्ता गुणाश्चान्ये तु पूर्ववत् ॥-नि० 20 काला अनंतमूल-शीतल, वृष्य, मधुर और कफनाशक है। अन्य सभी गुण सफेद अनंतमूल के समान ही समझे। विशेष उपयोग (1) रक्तशुद्धि के लिए-अनंतमूल और गोरखमुंडी के काढ़े में शहद मिलाकर पीना चाहिए / (2) प्रदर में-अनंतमूल और असगंध के काढ़े में दूध, मिश्री और घी मिलाकर पीना चाहिए / . (3) वीर्यवृद्धि के लिए-अनंतमूल के चूर्ण में मिश्री मिलाकर खाना चाहिए / ' (4) वातरक्त में अनंतमूल पीसकर लगाना और पीना चाहिए। (5.) कुष्ठरोग में-अनंतमूल पीसकर पीना चाहिए। (6) देह की दुर्गन्धि पर-अनंतमूल और गुलाब का फूल पीसकर लगाना चाहिए। (7) दाह पर-अनंतमूल की हरी पत्ती पीसकर लगाएँ। تھی۔