________________ 211 प्रसारणी (6) संग्रहणी में-खम्भारी का फूल, सोंठ, मिश्री और सौंफ का काढ़ा पीना चाहिए। (7) सर्पविष पर-खम्भारी की छाल का रस पीएँ / प्रसारणी सं० हि० म० प्रसारणी, ब० गाँधाली, गु० प्रसारणवेल्य, क० हेसरणे, तै० सविरेलचेटु, और लै० पिडेरियाफोटिडाPaederiafoetida. विशेष विवरण-प्रसारिणी को संस्कृत में राजबला भी कहते हैं। किन्तु अभी तक किसी ने यह निश्चय नहीं किया कि प्रसारिणी क्या बला है ? इसे कुछ लोग मराठी में चाँद विल और गुजराती में नारी कहते हैं / लैटिन में चाँद वेल और प्रसारिणी के नाम, लक्षण और गुण अलग-अलग हैं। वे नाम, लक्षण और गुण इससे एकदम नहीं मिलते / इन दोनों में बड़ा अन्तर है। गुण-प्रसारिणी गुरुव॒ष्या बल सन्धानकृत्सरा / .. वीर्योष्णा वातहत्तिक्ता वातरक्तकफापहा ॥-भा० प्र० प्रसारणी-भारी, वृज्य, बल्य, सन्धानकारक, उष्णवीर्य, वातनाशक, ताती तथा वातरक्त और कफनाशक है। विशेष उपयोग (1) वातविकार में प्रसारिणी के पंचांग का चूण सेवन करना चाहिए /