________________ वनस्पति-विज्ञान 208 रक्तदोष, दाह, कफ, पित्तरोग और पित्तातीसारनाशक है। पाटला का फल-शीतल, भारी, कषैला, तीता, मधुर तथा मूत्रकृच्छ, रक्तपित्त, हिचकी और वातनाशक है / गुण-भूपाटला कटूष्णा च बल्या वीर्यविवर्द्धिनी / -शा० नि० भूपाटला-कटु, उष्ण, बल्य और वीर्यवर्द्धक है / गुण-क्षुद्रा तु पाटला श्वेता स्निग्धा च व्रणशोधिनी / __कफमेदः कुष्टविषमण्डलानि विनाशयेत् ॥–शा० नि० छोटा पाटला-सफेद, स्निग्ध, व्रणशोधक तथा कफ, मेद, कुष्ठ, विष और मण्डलकुष्ठनाशक है / गुण-वल्ली पाटलिका चोष्णा वातारोचकपित्तहा / रक्तदोषं च शोकं च नाशयेदिति कीर्तिता ॥–शा० नि० वल्ली पाटला-गरम तथा वात, अरोचक, पित्त, रक्तदोष और शोथनाशक है। विशेष उपयोग (1) हिचकी में-पाटला के फूल के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए / (2) विष पर-पाटला की जड़ घिसकर पिलानी चाहिए। (3) मूत्रकृच्छ में-पाटला का रस नाभि पर लगाएँ। (4) सिर-दर्द पर-पाटला का रस लगाना चाहिए / (5) शोफोदर में-पाटला की जड़ छाछ के साथ दें। (6) कफ प्रमेह में-पाटला की जड़ और गोखुरू का काढ़ा पीना चाहिए।