SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 194 वनस्पति-विज्ञान होता है। यह खानदेश और नागपुर में विशेष होता है। इसका वृक्ष बड़ा होता है / इसकी छाल से रंग का काम लिया जाता है। यह दो प्रकार का होती है। गुण-रोहिणी वातहृत्कासश्वासशोणितनाशिनी ।-शा० नि० रोहिणी-वात, कास, श्वास, और रक्तनाशक है / गुण-मांसरोहिणिका व्रण्या चोष्णा च रक्तपित्तजित् / सर्वा संग्रहणी हन्ति नात्र कार्या विचारणा ॥-नि० 20 मांसरोहिणी-व्रण को हितकारी, उष्ण तथा रक्तपित्त एवं सब प्रकार की ग्रहणी को नष्ट करती है। इसमें विचार करने की आवश्यकता नहीं है। विशेष उपयोग (1) आँख आने पर-रोहिणी की छाल पीस और गरम करके लगाना चाहिए / (2) संग्रहणी में-रोहिणी की छाल और बेल की गुद्दी का काढ़ा पीना चाहिए। (3) घाव पर-रोहिणी की छाल की राख, घी में मिलाकर लगानी चाहिए। मेउड़ी सं० निर्गुण्डी, हि० मेउड़ी, ब० निशिन्दा, म० निर्गुण्डी, गु० नागड्य, क० करियल्लाकिमेउडी, ता० नोक्चि, अ० कसलुक,
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy