SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 202
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 171 जवासा विशेष विवरण-जवासा भी धमासा के समान ही होता है। यह जलाशय के समीप विशेष पैदा होता है। इसके कॉटे धमासा से कुछ बड़े होते हैं। प्रायः दोनों का गुण भी मिलताजुलता है / वर्षा के अन्त में यह फलता-फूलता है। वर्षाऋतु में जल से यह जल जाता है / इसमें लगने वाली शर्करा को जवासशर्करा या तरंजबीज कहते हैं। गुण-यासस्तु मधुरस्तिक्तो बल्यश्चाग्निप्रदीपकः / सरः शीतो लघुश्चैव तुवरः कफपित्तजित् // रक्तरुक्कुष्ठवीसर्पमेदभ्रममदापहः / वातरक्तं तृषां छदि कासं दाह ज्वरं हरेत् ॥-नि० 20 जवासा-मीठा, तीता, बल्य, अग्निप्रदीपक, सारक, शीतल, हलका, कषैला तथा कफ, पित्त, रक्तविकार, कुष्ठ, विसर्प, मेदरोग, भ्रम, मद, वातरक्त, तृषा, छर्दि, कास, दाह और ज्वर नाशक है / विशेष उपयोग (1) भ्रमरोग में-जवासा और मिश्री का काढ़ा पीना चाहिए। (2) नशा उतारने के लिए-जवासा का काढ़ा पीएँ। (3) मूत्रकृच्छ में-जवासा और आँवला का चूर्ण शीतल जल के साथ लेना चाहिए। (4) वायुरोग में-जवासा का चूर्ण सूंघना चाहिए / (5) सन्धिवात में-जवासा की पत्ती का तेल लगाएँ।
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy