________________ 159 मेदाशिंगी रसायनी तु तुवरा दाहपित्तकफापहा / रक्तरुक्कासतिमिरश्वासवणविषापहा // कृम्यर्शः शूलहृद्रोगनाशिनी शोथहा स्मृता। कुष्ठ वातं नाशयन्ति फलमस्यास्तु तिक्तकम् // कटूष्णं दीपनं हृद्यं रुच्यं चाम्लं पटु स्मृतम् / स्रंसनं कुष्ठमेहन्नं कासकृमिकफप्रणुत् // विषदोष व्रणं वातं नाशयेदिति कीर्तितम् / —शा० नि० मेढाशिंगी-रस में तीती; पाक में रूखी ; कड़वी, चक्षुष्य, शीतल, स्वादिष्ट, बल्य, भेदक, रसायन, कषैली तथा दाह, पित्त, कफ, रक्तविकार, खाँसी, तिमिर रोग, श्वास, व्रण, विष, कृमि, अर्श, शूल, हृद्रोग, शोथ, कुष्ठ और वात नाशक है / मेढाशिंगी का फल-तीता, कड़वा, उष्ण, दीपक, हृद्य, रुचिकारक, खट्टा, कषैला, संस्रक तथा कुष्ठ, प्रमेह, कास, कृमि, कफ, विषदोष, व्रण, और वातनाशक कहा गया है। विशेष उपयोग (1) उदर शूल में-मेढाशिंगी के पत्ते अथवा छाल का रस पीना चाहिए / (2) कृमि में- मेढाशिंगी के पत्ते या छाल का रस पीएँ। (3) खुजली में-मेढाशिंगी की लकड़ी का तेल लगाएँ। (4) आँख आने पर-मेढाशिंगी पीस-गरम कर लगाएँ। (5) अर्श को-मेढाशिंगी के काढ़े या रस से धोएँ /