________________ 139 मेहदी जाय तथा रात में सोते समय शहद और घी के साथ नियमितरूप से सेवन किया जाय / / (12) अंडकोशी की सूजन में-त्रिफला का काढ़ा, गोमूत्र मिलाकर सेवन करना चाहिए। (13) रक्तस्राव में-हर्र के काढ़े से स्त्रियों का गुप्तांग धोना चाहिए। मेहदी सं० नखरंजक, हि० मेहदी, ब. मेदी, म० मेंदी, गु० मेदी, तै० गोरंटम् , अ० हिन्नाअकान, फा० हिना, अँ० हेना-Henna, और लै० लोंजानियाँ आल्वा-Lansonia Alba. विशेष विवरण-मेहदी के वृक्ष बागों में लगाए जाते हैं / इसके पत्ते छोटे-छोटे होते हैं। इसके फूल आम की मौर के समान होते हैं / इनमें एक मधुर गंध होती है / इसकी पत्ती पीसकर हाथ-पाँव में लगाने से लाल हो जाते हैं। इसके लगाने से हाथ-पाँव की गर्मी दूर हो जाती है। अनेक लोग इसके बीज को रेणुका मानते हैं / इसका वृक्ष पाँच से सात फिट तक ऊँचा होता है / यह शीतल होती है / इसके फूल का इत्र और तेल बनता है / यह दाह, कुष्ठ और कफ नष्ट करती है / इसका बीज शोधक और ग्राहक है / यह प्रहदोष, भूतवाधा तथा ज्वर नाशक है /