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________________ 117 कचूर कपूरकचरी भी कचूर की ही एक जाति विशेष की है / कचूर की अपेक्षा इसमें सुगन्ध अधिक होती है / सुगन्धित पदार्थों में इसका सम्मिश्रण किया जाता है / इसका उपयोग भी अनेक औषधियों में होता है। गुण-कर्चुरः कटुतिक्तोष्णः कफकासविनाशनः / मुखवैशद्यजननो गलगण्डादिदोषनुत् ॥-रा० नि० कचूर--कड़वा, तीता, उष्ण तथा कफ और कास एवं मुख की विरसता को दूर करनेवाला तथा गल-गण्डादि दोष नाशक है / गुण-भवेद्गन्धपलाशी तु कषाया प्राहिणी लघुः / तिक्ता तीक्ष्णा च कटुकानुष्णास्यमलनाशिनी // शोथकासव्रणश्वासशूलहिध्मग्रहापहा ।-भा० प्र० - कपूरकचरी—कषैली, प्राही, हलकी, तीती, तीक्ष्ण, कटु, अनुष्ण तथा मल, शोथ, कास, व्रण, श्वास, शूल, हिचकी और ग्रहनाशक है। विशेष उपयोग (1) ज्वर में यदि मुखपाक हो तोकचूर का कन्द चबाकर थूक देना चाहिए और उसके बाद कुल्ला कर लेना चाहिए / इससे नोंद के समय मुँह से निकलनेवाली लार भी बन्द हो जाती है। ... (4) कृमि पर-कचूर का कन्द और प्याज का रस पीना चाहिए।
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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