SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - वनस्पति-विज्ञान 116 (2) शिरा के कटजाने पर यदि रक्त अधिक निकले तो-कुकरौंदा को मसलकर बाँधना चाहिए / (3) दाह पर-कुकरौंदा का रस लेप करना चाहिए / (4) रक्तातीसार में कुकरौंदा के रस में नागरमोथा पीसकर पीना चाहिए। (5) फोड़े पर-कुकरौंदा का पत्ता रखना चाहिए। कचूर udaeusarla. सं० कर्चुर, हि० कचूर, ब० एकांगी, म० कचोरा, गु० कचूरी, क० कचोरा, तै० काचोरालु, अ० एरकुल काफूर, फा० जरंबाद, अँ० लॉगजेडीआरो-Long Zedearo, और लै० करक्यूमांजेडोरीआ-Curcumazedoaria. विशेष विवरण-कचूर का पेड़ होता है। इसके पत्ते हल्दी के पत्ते के समान होते हैं। इसकी जड़ में हल्दी-जैसी गाँठ होती है / हल्दी के खेतों में यह स्वयं उत्पन्न होता है। यह सफेद होता है, और हल्दी पीली होती है / इसकी गाँठ को सुखाकर रख लेते हैं, और उसे ही कचूर कहते हैं। इसके पत्ते की लम्बाई दो हाथ तक होती है। कोंकण देश में यह बहुतायत से होता है / सुगन्धित पदार्थों में भी इसका उपयोग होता है। इसकी सुगन्ध अच्छी होती है।
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy