________________ वनस्पति-विज्ञान 108 जाती है / यह दो प्रकार की होती है। एक लाली लिए. पीली और दूसरी काले रंग की छोटी होती है। बड़ी मकोय खाने के काम में आती है / इसी छोटी मकोय को ही काली मकोय कहते हैं / यह औषध के काम में आती है / इस छोटी मकोय की पत्ती कई रोग विशेष में आश्चर्यजनक लाभ करती है। मकोय-खटमिट्टी और पाचक होती है / इसकी पत्ती के रस से लिखा हुआ हरी स्याही से लिखा-जैसा मालूम होता है। गुण-काकमाची त्रिदोषनी स्निग्धोष्णा स्वरशुक्रदा / तिक्ता रसायनी शोथकुष्ठाझेज्वरमेहजित् // कटुर्नेत्रहिता हिक्काछर्दिहृद्रोगनाशिनी / -भा० प्र० मकोय-त्रिदोष नाशक, स्निग्ध, गरम, स्वरजनक, शुक्रकारक, कड़वी, रसायन, चरपरी, नेत्रों को हितकारी तथा सूजन, कुष्ठ, बवासीर, ज्वर, प्रमेह, हिचकी, वमन और हृद्रोग नाशक है / विशेष उपयोग (1) शोफोदर पर-मकोय की पत्ती का रस लगाना चाहिए। (2) पित्त पर-मकोय की पत्ती का शाक खाएँ। (3) अफीम के विष पर-मकोय की पत्ती का रस पीएँ। (4) कान में कोई जानवर चला गया हो तोमकोय की पत्ती का रस गरम करके छोड़ना चाहिए / विरार