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________________ 107 मकोय शय में गर्दन तक डूबकर इसका रस और रस मिश्रित औषधि का सेवन किया जाता था। जिससे वमन का छींटा शरीर पर नहीं पढ़ने पाता था। गुण-सोमवल्ली कटुः शीता मधुरा पित्तदाहनुत् / तृष्णाविशोषशमनी पावनी यज्ञसाधनी ॥–रा० नि० सोमलता-कड़वी, शीतल, मधुर तथा पित्त, दाह, तृष्णा और विशोष को शमन करने वाली; पवित्र एवं यज्ञसाधिका है / विशेष उपयोग (1) कामला और यकृत विकार पर-सोमलता को सुखा कर उसका चूर्ण देना चाहिए / (2) ज्वर में- कोमल पत्तों का रस पीएँ / मकोय __ सं० काकमाची, हि० मकोय, ब० मदन, म० लघुकावली, गु० पीलुडी, क० कावइकाक, तै० बलुस, ता० कारे, फा० रोबातरीख, अ० एनबुससाल, और लै० सालनम् नाइग्रम्Solanum Nigrum. विशेष विवरण- मकोय का पेड़ सीधा ऊपर की ओर होता है / इसमें काँटे भी होते हैं। छोटे और सफेद फूल लगते हैं। इसका फल गुच्छों में होता है। फल के ऊपर सफेद रंग का आवरण होता है / उस आवरण को निकाल कर मकोय खाई
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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