________________ वनस्पति-विज्ञान 102 वर्षा ऋतु में विशेष मिलता है। अतएव इसे वर्षाभू, वर्षाभव और प्रावृपायणी आदि भी कहते हैं। शरीर के भीतरी और बाहरी शोथ को नष्ट करने के कारण इसे शोथन्नी भी कहते हैं। इसकी जड़ जमीन के भीतर बहुत फैलती है / यह मूत्रल है ; किन्तु इसमें विशेष गुण यह है कि मूत्र विरेचन में यह किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचाता / उदररोग में विशेष लाभदायक है / गुण - कटुः कषायारुच्यशः पाण्डुहृद्दीपनीपरा / शोफानिलगररलेप्महरी ब्रनोदरप्रणुत् ॥-भा० प्र० सफेद गदह पूर्णा-चरपरा, कपैला, रुचिकारक, अग्निदीपक तथा पारडु, बवासीर, शोथ, वात, विष, कफ, बध्न और उदररोग नाशक है। गुण-पुनर्नवारुणा तिक्ता कटुपाका हिमा लघुः / वातला ग्राहिणी श्लेष्मपित्तरक्तविनाशिनी // लाल गदहपूर्णा-तीता, पाक में कड़वा, शीतल, हलका, वातकारक, ग्राही तथा कफ, पित्त और रक्त-विकार नाशक है / गुण-नीला पुनर्नवा तिक्का कटूष्णा च रसायनी / हृद्रोगपाण्डुश्वयथुश्वासवातकफापहा ॥-रा० नि० नीला गदहपूर्णा-तीता, कड़वा, गरम, रसायन तथा हृद्रोग, पाण्डु, शोथ, श्वास, वात और कफ नाशक है / गुण-पौनर्नवी पर्णशाका चातिरूक्षा कफापहा / वाताग्निमांद्यगुल्मन्त्री प्लीहाशूलविनाशिका ॥-नि० र०