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________________ वनस्पति-विज्ञान 100 ___ (26 ) मस्तक-शूल और नाक से खून गिरने पर-पके गूलर में चीनी भरकर घी में तलें। बाद काली मिर्च और इलायची का चूर्ण चार-चार रत्ती मिलाकर प्रति दिन प्रातःकाल खाना चाहिए और मुख पर बैंगन का रस लगाना चाहिए। . आकाशवीर सं० आकाशबल्ली, हि० आकाशबेंल, ब० आकाशवेल, म० आकाशवेल, गु० अमरबल, क० नेदमुवल्ली, तै० इन्द्रजाल, अ० अफतिमून, और लै० कसकुटेराफ्लेक्स-Cuscutareflex. विशेष विवरण-यह डोरे के समान वृक्षों पर फैलती है। रंग पीला होता है / फूल सफेद आते हैं / इसके जड़ नहीं होती। इसका सम्पूर्ण अंग औषधि में व्यवहृत होता है। इसे कहीं-कहीं सोना बेल भी कहते हैं ; क्योंकि इसका रंग स्वर्ण की भाँति होता है / यह अधिकतर दुधारे वृक्षों पर फैलती है। कभी-कभी श्राम की शाखा पर भी देखी जाती है ! यह दो-तीन जाति की होती है। जिस वृक्ष पर यह लग जाती है, एक प्रकार से उसका नाश हो जाता है। गुण-आकाशवल्ली कटुका मधुरा पित्तनाशिनी / वृष्या रसायनी बल्या दिव्यौषधिपरा स्मृता॥-रा० नि० आकाशबौर-कड़वी, मधुर, पित्तनाशक, वृष्य, रसायन, बलकारक और दिव्यौषधि कही गई है।
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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