________________ थूहर (21) सूखा रोग में-आक के कोमल पत्तों को सेंककर और रस निकाल कर समूचे शरीर में लेप करना तथा सुंघाना चाहिए। रविवार और मंगलवार को इसके प्रयोग से बालकों का सूखा रोग नष्ट हो जाता है / थूहर ___ सं० स्नुही, हि० थूहर, सेंहुड़, ब० मनसागाछ, म० निव. डुंग, तै० चेमुडु, अ० जकुम, फा० लादनाम् , अँ० मिल्कहेज प्रिक्ली पीयर-Milkhedge Prickiy Pear, और लै० यूफोर्बिया ट्रिकला-Suphorbia Tircall. विशेष विवरण-यह प्रायः सर्वत्र मिलता है। इसकी डंठी काँटेदार और मोटी होती है / इसमें चावल की भाँति लम्बेलम्बे कॉटे होते हैं / इसका पत्ता प्रायः दो अँगुल चौड़ा होता है। यह पाँच फिट से लेकर दस फिट तक लम्बा होता है / इसकी प्रत्येक शाखा और पत्ते में से प्रचुर दूध निकलता है। इस दूध में अनेक रासायनिक पदार्थ होते हैं। यह कई जाति का होता है / जैसे–काँटेवाला, त्रिधारा, चौधारा, नागफनी, खुरासानी और विलायती आदि / खुरासानी थूहर का दूध विषाक्त होता है / इससे दस्त-कै होती एवं दाह बढ़कर मृत्यु तक हो जाती है। किन्तु सन्धिवात में इसका लेप करने से सद्यः फल होता है। थूहर यकृत के लिए लाभदायक है।