________________ भंगरैया (25) असेह में-सहिजन का फल और मूंग की दाल एक में पकाकर खाना चाहिए। (26) बवासीर में-सहिजन की पत्ती का रस पीएँ। (27 ) वातगुल्म में सहिजन की पत्ती के रस में एक तोला मिश्री मिलाकर पीना चाहिए / भंगरैया सं० गराज, हि० भंगरैया, ब० भीमराज, म० माका, गु० भांगरो, क० गरुगमुरु, तै० मुंगराजपुचेटु, अ० हजीज, फा० जमर्दर, अॅ० ट्रेलिंगइक्लिप्टा-Traling Eclipta, और लै० इक्लिप्टा प्रोस्ट्रेटा-Eclipta Prostrata. विशेष विवरण-इसका क्षुप प्रायः गीली भूमि में होता है। पत्ते खरखरे, लम्बे; किन्तु पतले होते हैं। इसकी पत्ती का रस काला होता है / सफेद, पीले और काले फूलों के रंग-भेद से से यह तीन प्रकार की होती है / यह प्रायः खेतों और सीड़ वाली जमीनों पर एक या दो वित्ता लम्बी होती है / कोंकण देश में श्राद्ध पक्ष में इसका रायता बनाते हैं / काले फूलों वाली भंगरैया बहुत कम दीख पड़ती है / यह औषध के काम में विशेष रूप से आती है। 'गुण-शृंगराजस्तु चक्षुष्यस्तिक्तोष्णः केशरंजनः / ___ कफशोफविषनश्च तत्रनीलो रसायनः ॥-रा०नि०