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________________ - तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 276 विशेषहेत्वभावाच्चानैकांतिकचोदनाभासो गोत्वाद्गोसिद्धिवदुत्पत्तिधर्मकत्वादनित्यत्वसिद्धिः। साधर्म्य हि यदन्वयव्यतिरेकि गोत्वं तस्मादेव गौः सिद्ध्यति न सत्त्वादेस्तस्य गोरित्यत्राश्वादावपि भावादव्यतिरेकित्वात्। एवमगोवैधर्म्यमपि गौः साधनं नैकशफत्वादित्यस्याव्यतिरेकित्वादेव पुरुषादावपि भावात्। गोत्वं पुनर्गवि दृश्यमानमन्वयव्यतिरेकि गो: साधनमुपपद्यते तद्वदुत्पत्तिधर्मकत्वं घटादावनित्यत्वे सति भावादाकाशादौ इस प्रकार वह असत् उत्तर स्वरूप जाति (कर्ता) परीक्षकों के सन्मुख विशेष हेतु के अभाव को दिखलाती है। अर्थात् इस प्रकार असमीचीन उत्तर को कहने वाले प्रतिवादी के यहाँ अपने निजपक्ष का साधक कोई विशेष हेतु नहीं है और विशेष हेतु के नहीं होने से यह प्रतिवादी का कथन व्यभिचार की देशना का आभास है। अर्थात् जब क्रिया हेतु गुणाश्रयत्व हेतु से आत्मा में क्रिया सिद्ध हो जाती है, तो विभुत्व हेतु निष्क्रियत्व को साध नहीं सकता है। अथवा उत्पत्ति धर्मकत्व हेतु से शब्द का अनित्यपना सिद्ध हो जाने पर तो अमूर्तत्व हेतु से शब्दों में नित्यपना साधा जाना व्यभिचारदोषग्रस्त है। उक्त दोनों अनुमान के हेतुओं में सत्प्रतिपक्ष दोष नहीं है। . फिर भी प्रतिवादी द्वारा सत्प्रतिपक्ष दोष दिया जा रहा है। अत: यह सत्प्रतिपक्ष दूषण का आभास है। गोत्वहेतु से गौ की सिद्धि के समान उत्पत्तिधर्म सहितत्व हेतु से अनित्यपन साध्य की सिद्धि हो जाती है। अन्वय और व्यतिरेक के धारक गोत्व से ही गाय की सिद्धि होती है। किन्तु अन्वय व्यतिरेकों को नहीं धारण करने वाले सत्त्व, प्रमेयत्व, कृतकत्व आदि व्यभिचारी हेतुओं से गौ की सिद्धि नहीं होती है। क्योंकि उन सत्त्व आदि हेतुओं का जिस प्रकार यहाँ गौ (बैलों) में सद्भाव है वैसे ही घोड़ा आदि विपक्षों में भी सद्भाव पाया जाता है। अतः सत्त्व आदि हेतुओं में व्यतिरेकीपना नहीं बनता है। इसी प्रकार गोभिन्न पदार्थों का विधर्मापन भी गौ का ज्ञापक हेतु हो जाता है। सींग और सास्ना दोनों से सहितपना गोभिन्न का वैधर्म्य है। अत: सींग, सास्ना, सहितपने से भी गोत्व की सिद्धि हो सकती है। किन्तु एक खुरसहितपना तो गोभिन्न का वैधर्म्य नहीं है। गो भिन्न अश्व, गधा, मनुष्य इनमें भी एकशफसहितपना विद्यमान है। अर्थात् गाय, भैंस बकरी के दो खुर होते हैं। घोड़े, गधे के एक खुर होता है। अत: पुरुष, घोड़ा, गधा, हाथी आदि विपक्षों में भी एक खुर सहितपन के ठहर जाने से वह हेतु व्यतिरेक को धारने वाला नहीं है। इसी कारण एक खुरसहितपना, पशुपना, जीवत्व आदि हेतु गौ के साधक नहीं हैं। जिस हेतु में गौ का साधर्म्य और अगौ (गौ भिन्न) का वैधर्म्य घटित हो जायेगा, वह साधर्म्य वैधर्म्य प्रयुक्त गौ का साधक होगा। इसी दृष्टान्त के अनुसार प्रकरण में वादी के यहाँ साधर्म्य और वैधर्म्य से उपसंहार कर दिया जाता है। गौपना तो गाय बैलों में ही देखा जाता है। अत: उसके होने पर होना, उसके नहीं होने पर नहीं होना, इस प्रकार अन्वय व्यतिरेकों को धारण करने वाले गोत्व गाय (बैल) का ज्ञापक हेतु हो जाता है। बस, उसी के समान उत्पत्ति धर्मसहितपन हेतु भी घट, पत्र आदि सपक्षों में भी अनित्यपने के कारण विद्यमान 1. यहाँ (पुरुषादौ) मनुष्य में नख की अपेक्षा एक खुर कहा है। जिस प्रकार गाय भैंस के एक पैर में दो खुर होते हैं वैसे घोड़े, गधे के नहीं होते; उनके एक ही खुर होता है।
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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