________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 367 कथमेकत्वादिसंख्या सर्वा सर्वत्र व्यवतिष्ठते अतिप्रसक्तेरिति चेन्न, एकत्रैकप्रत्ययवद्वितीयाद्यपेक्षया द्वित्वादिप्रत्ययानामनुभवात् / सकृत्सर्वसंख्यायाः प्रत्ययो नानुभूयते एवेति चेत्, सत्यं / क्रमादभिव्यक्तिः क्वचिद्वित्वसंख्या हि द्वितीयाभिव्यक्ता द्वित्वप्रत्ययविज्ञेया, तृतीयाद्यपेक्षया तु त्रित्वादिसंख्याभिव्यक्ता त्रित्वादिप्रत्ययवेद्या। तथानभिव्यक्तायास्तस्याः तत्प्रत्ययाविषयत्वादसकृत्सर्वसंख्यासंप्रत्ययः / ननु संख्याभिव्यक्तः प्राक्कुतस्तनी कुत: सिद्धा ? तदा तत्प्रत्ययस्यासंभवात् / तत्संभवे वा कथं नाभिव्यक्ता ? यदि पुनरसती तदा कुतोऽभिव्यक्तिस्तस्याः मंडूक शिखावदित्येकांतवादिनामुपालंभः न स्याद्वादिनां सदसदेकांतानभ्युपगमात् / सा हि शक्तिरूपतया प्राक्कुतस्तनी परापेक्षात: पश्चादभिव्यक्त्यान्यथानुपपत्त्या सिद्धा प्रश्न : इस प्रकार सभी पदार्थों में सम्पूर्ण संख्याओं के ज्ञान होने का सद्भाव नहीं है तो फिर एकत्व, द्वित्व आदि सभी संख्यायें सभी पदार्थों में कैसे व्यवस्थित हो जाती हैं ? यदि ज्ञान के बिना ही संख्याएँ सिद्ध हो जाती हैं तो अतिप्रसंग दोष आता है अर्थात् पुद्गल आदि जड़ पदार्थ भी ज्ञान स्वरूप हो जायेंगे। उत्तर : ऐसा कहना उचित नहीं है, क्योंकि एक ही पदार्थ में एकत्व ज्ञान के समान द्वितीय आदि पदार्थों की अपेक्षा से द्वित्व आदि संख्या का भी ज्ञान अनुभव में आ रहा है। प्रश्न : एक साथ सर्व संख्याओं का ज्ञान अनुभव में नहीं आ रहा है। - उत्तर : तुम्हारा यह कहना सत्य है क्योंकि यद्यपि एक साथ सर्व संख्या नहीं होती है परन्तु क्रम से संख्याओं की अभिव्यक्ति होती है। किसी एक पदार्थ में क्वचित् दूसरे पदार्थ से अभिव्यक्त हुई द्वित्वादि संख्या द्वित्व ज्ञान के द्वारा जानने योग्य है। तृतीयादि पदार्थों की अपेक्षा से अभिव्यक्त हुई त्रित्व आदि संख्या त्रित्वादि ज्ञान के द्वारा जानने योग्य है अत: अनभिव्यक्त हुई उन संख्या का उन ज्ञान का अविषय होने से एक साथ सम्पूर्ण संख्या का ज्ञान नहीं होता है। प्रश्न : संख्या की अभिव्यक्ति पूर्व किस पदार्थ से कौनसी संख्या उत्पन्न होती है (अभिव्यक्त होती है)? यह किस प्रमाण से सिद्ध है? क्योंकि अभिव्यक्ति के पूर्व काल में उस संख्या का ज्ञान होना असंभव है। यदि उनके पूर्व ज्ञान होना संभव है, तो वह संख्या अभिव्यक्त कैसे नहीं है? यदि उस समय संख्या अभिव्यक्त नहीं है, तो वह संख्या पदार्थ में किस कारण से अभिव्यक्त होती है। जैसे सर्वथा असत् रूपा मेंढ़क की चोटी की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती है। उत्तर : इस प्रकार का उलाहना एकान्तवादियों के प्रति लागू हो सकता है। यह उलाहना अनेकान्त वादियों के प्रति नहीं हो सकता क्योंकि स्याद्वादियों ने सर्वथा सत् और असत् को एकान्त से स्वीकार नहीं किया है। क्योंकि वह संख्या किसी-न-किसी हेतु से शक्ति रूप से पूर्व में विद्यमान है अन्यथा संख्या के पीछे दूसरों की अपेक्षा से अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। वह संख्या व्यक्ति रूप से पूर्व में विद्यमान नहीं थी