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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 230 सप्तविधत्वात् प्रश्नसप्तविधत्वं ततो वचनसप्तविधत्वं / क्वचिदस्तित्वस्य नास्तित्वादिधर्मषट्कनांतरीयकत्वासिद्धेस्तज्जिज्ञासायाः सप्तविधत्वमयुक्तमिति चेन्न, तस्य युक्तिसिद्धत्वात् / तथाहि-धर्मिण्येकत्रास्तित्वं प्रतिषेध्यधभैरविनाभावि धर्मत्वात् साधनास्तित्ववत्। न हि क्वचिदनित्यत्वादौ साध्ये सत्त्वादिसाधनस्यास्तित्वं विपक्षे नास्तित्वमंतरेणोपपन्नं तस्य साधनाभासत्वप्रसंगात् इति सिद्धमुदाहरणं। हेतुमनभ्युपगच्छतां तु स्वेष्टतत्त्वास्तित्वमनिष्टरूपनास्तित्वेनाविनाभावि सिद्धं, अन्यथा तदव्यवस्थितेरिति तदेव निदर्शनं / ननु च साध्याभावे साधनस्य नास्तित्वं नियतं साध्यसद्भावेस्तित्वमेव तत्कथं तत्प्रतिषेध्यत्वानुपपत्तेः। प्रश्न : “क्वचित् अस्तित्व वा नास्तित्व आदि छह धर्मों के साथ अविनाभाव की असिद्धि होने से उनकी जिज्ञासा (जानने की इच्छाओं) के सप्तविधत्व का कथन करना अयुक्त है अर्थात् कहीं पर एक अस्तित्व आदि धर्म भी रह सकते हैं, जैसे- हिंसा करना पाप है, मिथ्यात्व जीव का शत्रु है, आदि कथन में केवल अस्तित्व का ही कथन है, इनमें सप्त भंग नहीं हैं। उत्तर : ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि उस एक धर्म का छह धर्मों के साथ अविनाभाव युक्ति से सिद्ध है, उसी को अनुमान द्वारा स्पष्ट करते हैं। अनेक धर्म वाले एक धर्मी में अस्तित्व धर्म स्वकीय निषेध करने योग्य नास्तित्व आदि धर्मों के साथ अविनाभावी है क्योंकि वह धर्म है, जैसे बौद्धों के स्वीकृत हेतु का अस्तित्व धर्म। इस अनुमान में दिया गया साधनास्तित्व उदाहरण साध्य और साधनों से सहित है। कहीं पर अनित्यत्व आदि साध्य में सत्त्व आदि साधन का अस्तित्व पक्ष में रहना विपक्ष में नास्तित्व के बिना सिद्ध नहीं हो सकता। अन्यथा उस हेतु के हेत्वाभास का प्रसंग आता है, अर्थात् जिस हेतु में पक्षवृत्तित्व धर्म है उसमें विपक्ष की अपेक्षा नास्तित्व धर्म भी है, तभी वह समीचीन धर्म होता है, इस प्रकार साधनास्तित्व उदाहरण सिद्ध है। तथा हेतु को स्वीकार नहीं करने वाले अद्वैतवादियों के भी अपने अभीष्ट तत्त्व का अस्तित्व अनिष्ट तत्त्व के (नास्तित्व के) साथ अविनाभावी है, अर्थात् इष्ट तत्त्व की सिद्धि प्रतिपक्षी धर्म के अभाव के बिना हो नहीं सकती। हिंसा पाप है। यह पुण्य के अभाव के बिना सिद्ध नहीं हो सकती, अन्यथा अपने अभिप्रेत (इष्ट) तत्त्वों के साधन की व्यवस्था नहीं हो सकती, अतः अपने अभिप्रेत तत्त्वों को दृष्टान्त समझ लेना चाहिए। प्रश्न : साध्य के अभाव में साधन का नास्तित्व नियत है (निश्चित है) और साध्य के सद्भाव में साधन का अस्तित्व नियत ही है। इसलिए नास्तित्व को अस्तित्व का निषेध करने योग्य (अनुपपन्न) कैसे कहते हैं (क्योंकि घट स्वरूप का घट रूप से निषेध करना असिद्ध है।)
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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