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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 159 विरोधस्य क्वचिद्विशेषणता युक्ता, सर्वस्य सर्वविशेषणानुषंगात् / समवायवत्समवायिषु संयोगसमवायासत्त्वेपि तस्य विशेषणतेति चेन्न, तस्यापि तथा साध्यत्वात् न चाभाववद्भावेषु तस्य विशेषणता तस्यापि तथा सिद्ध्यभावात् / न ह्यसिद्धमसिद्धस्योदाहरणं, अतिप्रसंगात् / ननु च विरोधिनावेतौ समवायिनाविमौ नास्तीह घट इति विशिष्टप्रत्ययः कथं विशेषणविशेष्यभावमंतरेण स्यात् / दंडीति प्रत्ययवद्भवति चायमबाधितवपुर्न ___समवाय और संयोग संबंध से सम्बन्ध को प्राप्त नहीं होने वाले विरोध को किसी भी द्रव्य का विशेषण कहना युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि संबंध को प्राप्त नहीं हुए भी पदार्थ यदि विशेषण हो जायेंगे तब तो सब को सभी का विशेषण होने का प्रसंग आयेगा। ज्ञान अचेतन पुद्गल का और रूपादि अचेतन चेतन आत्मा के विशेषण हो जायेंगे। द्रव्य, गुण, कर्म, समवाय और संयोग इन पाँच भावों से अतिरिक्त समवाय नामक पदार्थ जैसे संयोग या समवाय संबंध से संबंधित (युक्त) नहीं होता हुआ भी द्रव्य आदि पाँच समवायियों में विशेषण हो जाता है वैसे ही विरोध समवाय और संयोग संबंध के बिना भी द्रव्य गुण कर्म आदि का विशेषण हो जाता है, ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि समवाय नामक पदार्थ के भी समवाय या संयोग संबंध के बिना द्रव्य आदि का विशेषण हो जाना (वा गुण समवाय, द्रव्य समवाय आदि निष्पन्न हो जाना) साध्य है, सिद्ध नहीं है। दृष्टांत सिद्ध पदार्थ का होता है साध्य का नहीं होता है जो स्वयं अन्धा है वह दूसरे का मार्गदर्शक नहीं हो सकता। समवाय भी द्रव्य है वह गुण कर्म आदि का विशेषण समवाय या संयोग संबंध से ही होगा अन्यथा नहीं अतः समवाय पदार्थ बिना किसी संबंध से द्रव्य गुण आदि में कैसे रह सकता है ? __ जैसे संयोग और समवाय संबंध के बिना भी अभाव भाव पदार्थों में विशेषण हो जाता है उसी प्रकार संयोग और समवाय संबंध के बिना भी विरोध विरोधियों का विशेषण हो जाता है, ऐसा भी कहना उचित नहीं है क्योंकि किसी संबंध के बिना अभाव भाव रूप पदार्थों का विशेषण हो जाता है इसकी सिद्धि का अभाव है / असिद्ध असिद्ध का दृष्टान्त नहीं हो सकता। (लंगड़ा हाथी लंगड़े सवार को घर नहीं पहुँचा सकता।) अर्थात् जो स्वयं असिद्ध है वह दूसरे को सिद्ध कैसे कर सकता है। अन्यथा (यदि स्वयं असिद्ध पदार्थ असिद्ध की सिद्धि करेगा तो) अति प्रसंग दोष आयेगा अर्थात् किसी भी असिद्ध पदार्थ की, किसी भी असिद्ध पदार्थ से सिद्धि हो जायेगी अतः समवाय और अभाव का दृष्टान्त देकर वैशेषिक विरोध को विरोधियों का विशेषण सिद्ध नहीं कर सकते। - शंका : चेतन अचेतन, अन्धकार प्रकाश, ये परस्पर विरोधी हैं। आत्मा और ज्ञान, पुद्गल और रूप ये परस्पर समवायी हैं, ये विरोधी हैं, ये समवायी हैं, इस स्थान पर घट नहीं है इत्यादि विशिष्ट ज्ञान विशेषण विशेष्य भाव के बिना कैसे हो सकता है। जैसे दण्ड वाला पुरुष है यह ज्ञान किसी संयोग सम्बन्ध के बिना नहीं हो सकता। उक्त ज्ञानों का यह पूर्ण शरीर अबाधित है अर्थात् अनुमान सिद्ध है जैसे जो विशिष्ट ज्ञान होता है वह विशेषण, विशेष्य और सबंध इन तीनों को विषय करता है, जैसे 'दण्डी' यह विशिष्ट,
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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