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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 265 तदाकारविशेषलिंगाभावादनुमानानवतारात् / न हि प्रतिनियतदिग्वेलाप्रमाणफलतया सूर्याचंद्रमसोर्ग्रहणेन व्याप्तं किंचिदवगंतुं शक्यं / विशिष्टांकमाला लिंगमिति चेत् / सा न तावत्तत्स्वभावस्तद्वदप्रत्यक्षत्वप्रसंगात् / नापि तत्कार्यं ततः प्राक् पशाच्च भावात्। सूर्यादिग्रहणाकारभेदो भाविकारणं विशिष्टांकमालाया इति चेन्न / भाविनः कारणत्वायोगात् भावितमवत् कार्यकाले, सर्वथाप्यसत्त्वादतीततमवत् / तदन्वयव्यतिरेकानुविधानात्तस्यास्तत्कारणत्वमिति चेन्न, तस्यासिद्धेः। न हि सूर्यादिग्रहणाकारभेदे भाविनि विशिष्टांकमालोत्पद्यते न पुनरभाविनीति नियमोस्ति, तत्काले ततः पशाच्च तदुत्पत्तिप्रतीतेः। कस्याश्चिदंकमालायाः स भाविकारणं कस्याश्चिदतीतकारणमपरस्याः यदि कहो कि गणित की विशिष्ट अंकमाला ही सूर्य-चन्द्रग्रहण के विशेष आकारों की ज्ञापक हेतु है तो जैनाचार्य पूछते हैं कि वह अंकमाला स्वभाव हेतु है? या कार्य हेतु है? वह विशिष्ट अंकमाला स्वभाव हेतु तो हो नहीं सकती- क्योंकि यदि साध्य रूप विशेष आकारों का स्वभाव वह अंकमाला होगी तो उस आकार विशेष रूप साध्य के समान उस अंकमाला के अप्रत्यक्ष होने का प्रसंग आयेगा। (क्योंकि अप्रत्यक्ष साध्य का स्वभाव हेतु होने से अंकमाला के अप्रत्यक्ष होने का प्रसंग आयेगा।) : गणित अंकमाला कार्य हेतु भी नहीं है- क्योंकि अंकमाला का लिखना ग्रहण के बहुत काल पूर्व और बहुत काल पीछे भी हो सकता है। परन्तु कार्य हेतु को तो कारण के अव्यवहित उत्तर काल में होना चाहिए। सूर्य, चन्द्रमा के ग्रहण का आकारभेद विशिष्ट अंकमाला का भावी कारण है। ऐसा भी कहना उचित नहीं है क्योंकि भविष्य में होने वाले पदार्थों को वर्तमान कार्य का कारणपना सिद्ध नहीं हो सकता है। क्योंकि कार्य के. समय सर्वथा भी नहीं रहने वाला हेतु कारण नहीं हो सकता है। जैसे भूतकाल और भावीकाल वर्तमान कार्य का हेतु नहीं हो सकता है। इस अंकमाला के ग्रहण के आकार विशेषों के साथ अन्वय और व्यतिरेक का अनुविधान (अविनाभाव सम्बन्ध) घटित होता है। अतः अंकमाला कार्य हेतु है। ऐसा कहना भी उचित नहीं है, क्योंकि उस अन्वय-व्यतिरेक का घट जाना सिद्ध नहीं है। (भविष्य काल में होने वाले सूर्य, चन्द्रमा के ग्रहण के आकार भेद में विशिष्ट अंकमाला उत्पन्न नहीं होती है।) __अथवा- सूर्यादि ग्रहण के होने पर ही विशिष्ट अंकमाला उत्पन्न होती हैं, सूर्यादि ग्रहण के विशेष आकारभेद नहीं होने पर विशिष्ट अंकमाला उत्पन्न नहीं होती है, ऐसा नियम नहीं है। अपितु उस काल में और उससे बहुत पीछे उसकी उत्पत्ति प्रतीत होती है। . वह ग्रहण का आकारभेद किसी अंकमाला का तो भावी कारण है। किसी अंकमाला का अतीत
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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