________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक - 263 तन्मात्रप्रतिपित्सायाम- 'स्ति मोक्षमार्ग' इति वक्तुं युज्येत, विनेयप्रतिपित्सानुरूपत्वात् सूत्रकारप्रतिवचनस्य। तर्हि मोक्षविशेषे विप्रतिपत्तेस्तमेव कस्मात्राप्राक्षीत् इति चेत्। किमेवं प्रतिपित्सेत विनेयः सर्वत्रेदृकार्यस्य संभवात् / तत्प्रश्रेऽपि हि शक्येत चोदयितुं किमर्थं मोक्षविशेषमप्राक्षीन पुनस्तन्मार्गविशेषं, विप्रतिपत्तेरविशेषादिति। ततः कस्यचित्क्वचित् प्रतिपित्सामिच्छता मोक्षमार्गविशेषप्रतिपित्सा न प्रतिक्षेप्तव्या। ननु च सति धर्मिणि धर्मचिंता प्रवर्तते नासति / न च मोक्षः सर्वथास्ति येन तस्य विशिष्टत्वकारणं जिज्ञास्यत, इति न साधीयः। यस्मात् येऽपि सर्वात्मना मुक्तेरपह्नवकृतो जनाः। तेषां नात्राधिकारोऽस्ति श्रेयोमार्गावबोधने // 252 / / को हि सर्वात्मना मुक्तेरपह्नवकारिणो जनान्मुक्तिमार्ग प्रतिपादयेत्तेषां तत्रानधिकारात् / को शंका- मोक्षमार्ग के विशेष अंश के समान मोक्ष के विशेष स्वरूप में भी नाना प्रवादियों का विवाद है। अतः शिष्य ने आचार्यवर्य से मोक्षमार्ग ही क्यों पूछा? मोक्ष का विशेष स्वरूप क्यों नहीं पूछा? उत्तर- जैनाचार्य कहते हैं कि वह शिष्य गृद्धपिच्छ आचार्य से मोक्ष विशेष का स्वरूप क्यों पूछता है? इस प्रकार से कुतर्क करना सर्वत्र संभव है। अर्थात् ऐसी भी शंका कर सकते है कि शिष्य ने गुरुवर्य से 'मोक्ष का विशेष' स्वरूप ही क्यों पूछा? मार्गविशेष क्यों नही पूछा? क्योंकि उसके प्रश्नानुसार तो हम ऐसी भी शंका कर सकते हैं कि-"शिष्य ने किस लिये मोक्षविशेष को जानने की अभिलाषा की। मोक्षविशेष को क्यों पूछा? मोक्ष के मार्गविशेष को क्यों नहीं पूछा? दोनों (मोक्षविशेष और मोक्ष के मार्ग विशेष) में ही विवाद होने में कोई विशेषता नहीं है। दोनों समान हैं। इसलिए किसी जीव की किसी भी विषय (मोक्षविशेष या मोक्षमार्गविशेष) में जानने की अभिलाषा को स्वीकार करने वाले नैयायिक आदि के द्वारा शिष्य के मोक्षमार्ग विशेष को जानने की अभिलाषा का खण्डन नहीं करना चाहिए। शंका- धर्मी के सिद्ध हो जाने पर ही धर्म की चिन्ता होती है, धर्मी के सिद्ध नहीं होने पर धर्म की चिन्ता (धर्म का विचार) नहीं हो सकती। मोक्षरूप धर्मी सर्वथा असिद्ध है। अत: मोक्षमार्ग के विशिष्ट कारणत्व रूप धर्म की जिज्ञासा कैसे हो सकती है? अर्थात् मोक्षतत्त्व की सिद्धि होने पर ही मोक्षप्राप्ति के कारणों को जानने की इच्छा हो सकती है, परन्तु मोक्षतत्त्व की सिद्धि ही नहीं है तो मोक्ष के कारणों के जानने की अभिलाषा कैसे हो सकती है? उत्तर- ऐसा कहना उचित नहीं है क्योंकि जिस कारण से जो भी चार्वाक, शून्यवादी आदि सम्पूर्ण रूप से मोक्ष का अपह्नव (लोप, छिपाना) कर रहे हैं, उन लोगों का इस मोक्षमार्ग को समझाने के प्रकरण में अधिकार नहीं है।।२५२॥ ऐसा कौन बुद्धिमान् पुरुष है, जो सम्पूर्ण रूप से मोक्ष का निषेध करने वाले मनुष्यों के प्रति मुक्तिमार्ग का प्रतिपादन करे। क्योंकि जीवादि सात तत्त्वों का निषेध करने वाले उन नास्तिकों को 'तत्त्वार्थ