________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक - 182 सकलसत्त्वानां तदकारणत्वे हि न तद्विषयत्वं स्यानाकारणं विषय इति वचनात् / सकलसत्त्वचित्तानामालंबनप्रत्ययत्वात् सुगतचित्तस्य न तदेकसंतानतेति चेन्न। पूर्वस्वचित्तैरपि सहैकसंतानतापायप्रसक्तेस्तदालंबनप्रत्ययत्वाविशेषात् / समनंतरप्रत्ययत्वात् स्वपूर्वचित्तानां तेनैकसंतानतेति चेत्, कुतस्तेषामेव समनंतरप्रत्ययत्वं न पुनः सकलसत्त्वचित्तानामपीति नियम्यते? तेषामेकसंतानवर्तित्वादिति चेत्, सोऽयमन्योन्यसंश्रयः। . सत्ये कसंतानत्वे जीवों का ज्ञान सुगत के ज्ञान में कारण है। यदि सम्पूर्ण जीवों का ज्ञान बुद्ध के ज्ञान का कारण नहीं है (ज्ञान अकारण होता है) ऐसा मानोगे तो सुगत संसारी जीवों के ज्ञान को अपने ज्ञान का विषय नहीं कर सकता। क्योंकि सुगत के सूत्र में कथन है कि “जो ज्ञान का कारण नहीं है, वह ज्ञान का विषय भी नहीं है।" (बौद्ध) ज्ञान के कारण तीन प्रकार के हैं- उपादान कारण, निमित्तकारण और अवलम्बन कारण। पूर्वक्षणवर्ती ज्ञान उत्तरक्षणवर्ती ज्ञान का उपादान कारण है। इन्द्रियाँ, प्रकाश, हेतु, अविद्याक्षय आदि ज्ञान के निमित्त कारण हैं। ज्ञान के द्वारा जानने योग्य ज्ञेय विषय ज्ञान का अवलम्बन कारण हैं। अवलम्बन कारण कारक कारणों के समान प्रेरक नहीं हैं। (प्रधान कारण पूर्वज्ञान और इन्द्रियाँ ही इसी प्रकार सम्पूर्ण प्राणियों का विज्ञान भी सुगत के चित्त (ज्ञान) का अवलम्बन कारण है (उपादान कारण नहीं है) इसलिए उन अवलम्बन कारणों का कार्य के साथ एकसंतानत्व नहीं है। सुगत का यह कथन भी युक्तिसंगत नहीं है- क्योंकि ऐसा मानने पर पूर्ववर्ती स्वकीय ज्ञानसंतान के साथ में भी एकसंतान के अपाय (नाश) का प्रसंग आयेगा अर्थात् स्वकीय ज्ञानसंतान के साथ भी एकसंतान का अखण्ड प्रवाह सिद्ध नहीं हो सकेगा। क्योंकि इतर पदार्थों के समान सुगत के पूर्व ज्ञानक्षण भी सुगतज्ञान में विषय रूप हो चुके हैं। वे भी ज्ञान के अवलम्बन कारण हैं, उपादान कारण नहीं हैं। अतः अवलम्बन कारण की अपेक्षा दोनों में कोई अन्तर नहीं है। (बौद्ध) समन्तर प्रत्यय के कारण (सुगत के पूर्वक्षणवर्ती ज्ञानक्षण जैसे उत्तरकाल में होने वाले ज्ञान के अवलम्बन कारण हैं उसी प्रकार अव्यवहित पूर्ववर्ती होने के कारण वे उपादान कारण भी हैं अतः) सम्पूर्ण स्वकीय पूर्व चित्तक्षणों के साथ एकसंतानत्व घटित हो जाता है। इस प्रकार बौद्ध के कहने पर जैनाचार्य कहते हैं कि- जिस प्रकार अव्यवहित पूर्ववर्ती सुगत के पूर्व ज्ञानक्षण जैसे उत्तरज्ञान के समन्तर प्रत्यय (उपादान कारण) हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण प्राणियों के ज्ञान भी व्यवधान रहित पूर्वक्षणवर्ती होकर सुगत के ज्ञान के उपादान कारण क्यों नहीं होते हैं। केवल सुगत के पूर्ववर्ती ज्ञानक्षण ही उत्तरक्षणवर्ती ज्ञान के उपादान कारण है, ऐसा नियम क्यों किया जाता है? सर्व प्राणियों के चित्तों को उपादान का नियम क्यों नहीं किया जाता है?