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________________ ज्ञानार्णव को अपनी कृतियों में प्रमाण के रूप में उद्धृत किया। स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा की भट्टारक शुभचन्द्र (16 वीं शती) विरचित टीका में तथा ज्ञानार्णवे एवं इनके पूर्ववर्ती पंडित आशाधर (13 वीं शती) कृत भगवती आराधना की टीका में उक्तं च ज्ञानार्णवे विस्तरेण कहकर ज्ञानार्णव के कुछ श्लोक उद्धृत किये हैं। ___ आचार्य शुभचन्द्र का समय कल्पनाओं और अनुमानों पर आधारित है फिर भी उनके अनुसार जो तथ्य आकलित किए जा सके उनसे वे आचार्य हेमचन्द्र के पूर्ववर्ती सिद्ध होते हैं। आचार्य हेमचन्द्र कृत (वि.सं. 1145-1226) योगशास्त्र पर आचार्य शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। योगशास्त्र का प्राणायाम और ध्यान का प्रसंग ज्ञानार्णव के वर्णन और विषय से पूर्ण साम्य रखता है। केवल छन्दोगत परिवर्तन होने से कुछ शब्द भेद दृष्टिगत होता है। ज्ञानार्णव में जहाँ विवेचन अत्यन्त विस्तृत, क्रमविहीन व अप्रासंगिक चर्चा से युक्त है, वहीं योगशास्त्र का विवेचन संक्षिप्त एवं क्रमबद्ध होने के साथ-साथ अप्रासंगिक चर्चा से रहित है। ऐसा प्रतीत होता है कि हेमचन्द्र ने ज्ञानार्णव के प्रसंगों को अपने बुद्धिचातुर्य से व्यवस्थित एवं संक्षेप रूप प्रदान किया है। दोनों की विवेचन शैली में इतना अन्तर है कि जहाँ शुभचन्द्र ने अहिंसा आदि महाव्रतों की विवेचना की है वहाँ हेमचन्द्र ने गृहस्थों द्वारा उपास्य अणुव्रतों का भी विवेचन किया है। दोनों के दृष्टिकोण में अन्तर था। आचार्य शुभचन्द्र के समक्ष वे साधक थे जो लौकिक जीवन का सर्वथा परित्यागकर अपने आपको संयममय ध्यानमय साधना में लीन करना चाहते थे। आचार्य हेमचन्द्र योगसाधना का सरलीकृत रुप जन-जन को बंतलाना चाहते थे। ____ आचार्य शुभचन्द्र दारा उपस्थित तथा आचार्य हेमचन्द्र दारा विशदीकृत जैनयोग की परम्परा आगे के लेखकों को भी प्रभावित करती रही। पण्डित आशाधर ने जिनका समय 13-14 वीं शती माना जाता है अध्यात्मरहस्य नामक रचना की। उसमें आत्मदर्शन तथा आत्मसंमार्जन का योग की भूमिका पर निरूपण हुआ है। योगप्रदीप नामक एक जैन योग विषयक ग्रन्थ प्राप्त है, इसमें आत्मा परमात्मा के साथ अपना विशुद्ध स्थायी एवं शाश्वत मिलन कैसे साध सकता है, वह परम पद कैसे अधिगत कर सकता है इसका बड़े सरल शब्दों में विवेचन हुआ है उन्मनीभाव तथा समरसभाव आदि का भी सुन्दर वर्णन है। ये दोनों ही शब्द शुभचन्द्र तथा हेमचन्द्र द्वारा अपने ग्रन्थों में विशेष रूप से प्रयुक्त हुए हैं। इस पर शुभचन्द्र तथा हेमचन्द्र का बहुत प्रभाव है। इसे ज्ञानार्णव और योगशास्त्र का एक संक्षिप्त संस्करण कहा जा सकता है। खरतरगच्छीय आचार्य श्री देवचन्द्र ने अठारहवीं शताब्दी में ध्यानदीपिका नामक ग्रन्थ की रचना की। ध्यानदीपिका की रचना में उनका लक्ष्य यह रहा है कि जो ज्ञानार्णव 229
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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