________________ 7. मुखनिर्विष - योगी के वचनमात्र से तिक्तादि रस व विष से युक्त विविध प्रकार के अन्न का निर्विष होना। आस्यनिर्विष मुनि के वचन के श्रवण मात्र से ही व्याधियुक्त मनुष्य का स्वस्थ हो जाना। 8. दृष्टिनिर्विष - योगी दारा रोग और विष से युक्त जीव को देखने मात्र से उसका नीरोग हो जाना। रसऋद्धि इसके 6 भेद हैं - 1. आशीविष - योगी द्वारा किसी प्राणी को 'मर जाओ' ऐसा कहने पर उस प्राणी की तत्क्षण ही मृत्यु हो जाना। 2. दृष्टिविष - किसी क्रुद्ध मुनि के द्वारा किसी प्राणी के देखे जाने पर उस प्राणी की उसी समय मृत्यु हो जाना। 3. क्षीरासावी- योगी के हाथ में आए हुए नीरस भोजन एवं वाणी का क्षीर के समान मधुर एवं सन्तोषजनक हो जाना।। 4. मध्वासावी- योगी के हाथ में आए हए नीरस भोजन एवं वाणी का मधु के समान मधुर हो जाना अथवा योगी के वचनों का मधु आदि द्रव्य के समान हो जाना। 5. सर्पिरासावी - योगी के हस्तगत नीरस भोजन एवं वाणी का घृत के समान स्निग्ध होना। 6. अमृतस्रावी - योगी के हस्तगत नीरस भोजन एवं वाणी का अमृत के .. समान विशुद्ध एवं निर्मल हो जाना। क्षेत्रऋद्धि क्षेत्रऋद्धि के दो भेद हैं - 1. अक्षीणमहानसऋद्धि और 2. अक्षीणमहालयऋद्धि। ___ 1. अक्षीणमहानस ऋद्धि या अक्षीणमहानसिक - किसी मुनि या साधु दारा किसी के घर में भोजन किये जाने पर भिक्षा या भोजन की कमी न होना। 2. अक्षीणमहालय - किसी मुनि या साधुब्दारा किसी मन्दिर में निवास करने पर उस स्थान में समस्त देव, मनुष्य और तिर्यर्थी को बाधारहित निवास करने की शक्ति प्राप्त होना। 1. तिलोयपण्णत्ती, 4/1077-85. 2. तिलोयपण्णत्ती, 4/1088-91. 215