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________________ मंगलाचरण . आद्य वक्तव्य भारतीय योग परम्परा में ध्यान योग के आदिस्रोत आदौ यो मुग्ध-बुद्धीनां, अर्याणां शिव-सिद्धये / स्वर्मुक्तिदं द्विधा धर्मं, दिव्येन ध्वनिनादिशत् / / 6 / / उत्पाद्य केवलज्ञानं, हत्वाघाति-रिपून् बलात् / / महायोगासिनं नौमि, तमादि-तीर्थ-वर्तकम् / / 7 / / सुकुमाल चरित आ. सकलकीर्ति अर्थात् जिन्होंने सरल बुद्धि आर्यों की शिवोपलब्धि के लिए आदियुग में पुरुषार्थपूर्वक घातिकर्म रूप शत्रुओं का हनन कर केवलज्ञान उत्पन्न किया तथा दिव्य ध्वनि के द्वारा स्वर्ग मोक्षदाई गृहस्थ मुनि रूप ' दो प्रकार के धर्म का उपदेश दिया उन आदि-धर्म-तीर्थ-प्रवर्तक महायोग निवासी ऋषभदेव को नमस्कार करता हूँ। योगकाल कृतयुग/भ. ऋषभकाल के पूर्व भोगभूमि/ भोगयुग का काल था। अन्तिम मनु/कुलकर नभिराय हुए। इनके नाम से भरत क्षेत्र के कुछ भाग आर्यखण्ड का नाम नाभिखंड हो गया यथा-हिमाद्रिजलधे रन्त भिखण्डमिति स्मृतं/1/2/37/55/ अजनाभं नामैतद् वर्ष भारतमिति यद् व्यपदिशन्ति / 5/7/3/श्रीमद् भागवत भ. ऋषभनाथ के उत्पन्न होने पर इनका छोटा सा “अज' नाम भी नाभि के पूर्व जुड़ गया तभी से अजनाभि या अजनाभ वर्ष यह संज्ञा प्रसिद्ध हुई ऐसा प्रतीत होता है। डॉ. अवधविहारीलाल अवस्थी व डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल ने नाभि को अजनाभ सिद्ध किया है। अगणितवर्ष वाद जब आदीश के पुत्र प्र. चक्रवर्ती भरत हुए इनको जब आदिराज ने दीक्षा के समय दिया तभी से इस देश का नाम भरत से भारत रखकर जनता के समक्ष घोषणा की तभी से जनता उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर "भारत" यह बोलती आ रही है भरतस्य इदं इति भारतीयं - भरत सम्बन्धी कर्म/धर्म संस्कृति / संस्कार को भारतीय कहा जाता है। तथा भरत के द्वारा आदरित योग कर्म/धर्म संस्कृति की परम्परा/सन्तति व आम्नाय भारतीय योग परम्परा है उसी योग परम्परा में ज्ञानार्णव /योगार्णव है जो यह शोध का विषय महत्वपूर्ण है जिसमें भारत की मूल परम्परा का समावेश है भारतीय शब्द व्यापक है शुभचन्द्राचार्य का योगार्णव व्याप्य है जो सिन्धु में विन्दु प्रमाण है आदिदेव से लेकर महावीर तक जितना भी यौगिक उपदेश है वह भारतीय योग है उसका अनुसरण कर जिन आचार्यों ने जो भी यौगिक कथन किया है वह भारतीय है उसमें शुभचन्द्र भी गर्भित हैं जिन्होंने योगार्णव को पार किया। (iv)
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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