________________ 86 : प्रो० के० आर० चन्द्र (स) महापच्चक्खाण के ‘परलोएणं' और आराधनापताका के 'परलोइए' पाठों के बदले में 'परलोइयं' पाठ अप्पणो अटुं' के साथ उपयुक्त ठहरता है / अतः इस गाथा का पाठ मूलतः इस प्रकार होना चाहिए, जो परवर्ती काल में विविध ग्रंथों में बदल गया लगता है - किं. पुण अणगारसहायगेण अनोत्रसंगहबलेण / परलोइयं न सक्कइ साहेउं अप्पणो अटुं ? || महापच्चक्खाण-पइण्ण्यं की उपरोक्त गाथाओं के समीक्षात्मक अध्ययन से निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट होते हैं : (i) महापच्चक्खाण की गाथा 1 सही है जबकि मूलाचार की गाथा छन्द और अर्थ की दृष्टि से उपयुक्त नहीं लगती है / (ii) महापच्चक्खाण की गाथा 2 में अरहओ' पाठ है जबकि मूलाचार में अरहदो' पाठ है जो प्राचीन है / इस आधार पर ऐसा लगता है कि मूल पाठ अरहतो' होगा जो श्वेताम्बर परम्परा के ग्रंथों में अरहओ' और दिगम्बर परम्परा के ग्रंथों में अरहदो' हो गया है / (iii) महापच्चक्खाण की गाथा 4 को सुधारने में मूलाचार का पाठ सहायक बन रहा है। (iv) महापच्चक्खाण की गाथा 5 को सुधारने में भी मूलाचार का पाठ सहायक बन रहा है। (v) महापच्चक्खाण की गाथा 8 को सुधारने में भी मूलाचार का पाठ सहायक बन रहा है / ... (vi) महापच्चक्खाण की गाथा 20 को सुधारने में निशीथसूत्र भाष्य से सहायता मिलती है। (vii) महापच्चक्खाण की गाथा 82 को सुधारने में आराधनापताका और निशीथसूत्र भाष्य से सहायता मिलती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि अनेक गाथाओं में मूलाचार का पाठ, छन्द और अर्थ की दृष्टि से उपयुक्त प्रतीत नहीं होता है / अनेक गाथाओं के सन्दर्भ में मूलाचार और नियमसार के पाठ परवर्तीकाल के भी प्रतीत होते हैं / कुछ गाथाएँ ऐसी भी हैं जिनमें मूलाचार आदि का पाठ प्राचीन प्रतीत होता है और कुछ गाथाओं में महापच्चक्खाण के पाठ को सुधारने में मूलाचार, निशीथसूत्र भाष्य और आराधनापताका के पाठों से सहायता मिलती है / अतः यह कहना कि अमुक सम्प्रदाय के ग्रंथों में से अमुक संप्रदाय के ग्रंथों में गाथाएँ ली गयी हैं, पूर्णतः सत्य नहीं लगता है / वस्तुतः ऐसा प्रतीत होता है कि परंपरा से चली आयी गाथाओं की मूल रचना और भाषा कुछ और ही थी परंतु परवर्ती काल में अलग-अलग सम्प्रदायों द्वारा उन्हें ग्रहण करते समय उनमें परिवर्तन आ गये / विशेष रूप से श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में उन पर महाराष्ट्री का और दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में उन पर शौरसेनी का प्रभाव आया है / इस सारे समीक्षात्मक अध्ययन से यही तथ्य उजागर होता है / * भूतपूर्व विभागाध्यक्ष प्राकृत विभाग गुजरात युनिवर्सिटी अहमदाबाद