SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकीर्णकों का पाठ निर्धारण : 85 .. जे मे जाणंति जिणा अवराहे जेसु जेसु ठाणेसु / ... ते हं आलोएतुं उवट्ठितो सव्वभावेण / / कहने का तात्पर्य यह है कि इस गाथा का प्राचीन रूप निशीथसूत्र भाष्य में ही विद्यमान है। (8) महापच्चक्खाण-पइण्णयं की गाथा 82 का पाठ इस प्रकार है : किं पुण अणगार सहायगेण अण्णोण्णसंगहबलेणं / परलोएणं सक्का साहेउं अप्पणो अटुं / / आराधनापताका की गाथा 9 का पाठ इस प्रकार है :किं पण अणगार सहायगेण अन्नोत्रसंगहबलेण / परलोइए न सक्का साहेउं अप्पणो अटुं / / निशीथसूत्र भाष्य की गाथा 3913 का पाठ इस प्रकार है : किं पुण अणगार सहायएण अण्णोण्णसंगहबलेण / परलोइयं ण सक्कइ साहेउं उत्तिमो अट्ठो / / भगवती आराधना की गाथा 1554 का पाठ इस प्रकार है : किं पुण * अणयारसहायगेण कीरयंत पडिकम्मो / संघे आलग्गंते आराधेदुं ण सक्केज्ज / / 1. छन्द की दृष्टि से विश्लेषण छन्द की दृष्टि से भगवती आराधना के सिवाय अन्य तीनों ग्रन्थो की गाथाएँ गाथाछन्द में उपलब्ध हो रही हैं / भगवती आराधना में प्रथम पाद में 28 मात्राएँ हैं जो छन्द की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है और 'कीरयंत पडिकम्मो' भाषा की दृष्टि से अस्पष्ट है और सही नहीं 2. भाषा की दृष्टि से विश्लेषण भाषिक दृष्टि से अणगारसहायगेण' पाठ अणगारसहायएण' से, अत्रोत्र-' पाठ अण्णोण्ण-'से, 'संगहबलेण' पाठ-'संगहबलेणं' से तथा 'न' पाठ 'ण' से प्राचीन है। ____3. अर्थ की दृष्टि से विश्लेषण (अ) अर्थकी दष्टि से महापच्चक्खाण की गाथा 80 से 84 तक आत्मार्थसाधना' के लिए सर्वत्र अप्पणो अटुं' का प्रयोग है, अतः निशीथसूत्र भाष्य का 'उत्तिमो अट्ठो' पाठ परवर्ती प्रतीत होता है और व्याकरण की दृष्टि से यहाँ पर 'उत्तिमं अटुं' होना चाहिए था। - (ब) महापच्चक्खाण में अव्यय 'न' का अभाव है जो अर्थ की दृष्टि से आवश्यक लगता है।
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy