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________________ 70 : जौहरीमल पारख अतिरिक्त, चार ग्रंथों (आतुरप्रत्याख्यान, जंबूपइत्रा, आराधनापताका और पर्यन्त आराधना). के एक से अधिक ग्रन्थ मिलते हैं और ऋषिभाषित इन तीन जोड़ों से अलग ही है / अतः वास्तविक संख्या 30 से कहीं अधिक पहुंच जाती है / दिगम्बर परम्परा के अनुसार केवल षडावश्यक, षट्खण्डागम और कसायपाहुड़ को छोड़कर कोई भी आगम वर्तमान में उपलब्ध नहीं है / योनिप्राभृत व तीर्थोद्गालिक? हैं परन्तु उन्हें वे आगम का दर्जा नहीं देते हैं / यद्यपि आचार्य कुन्दकुन्द व कुछ अन्य बहुश्रुत . स्थविरों के ग्रंथों को परमागम की उपाधि देने की प्रथा दिगम्बर आम्नाय में कहीं जन्म ले रही है परन्तु ऐसी मान्यता' हो गई हो, यह अभी तक नहीं कहा जा सकता। अतएव बिना किसी सांप्रदायिक विवाद में पड़ते हुए (अर्थात् जिस किसी के द्वारा जो भी ग्रंथ आगम माना जाता है उसको हमने भी आगम गिन लिया है) संकलित जानकारी के आधार पर हम तीन सारिणियाँ संलग्न कर रहे हैं जिसके अनुसार क्रमांक 1 से 48 (६.९,४४को छोड़कर)तक जो प्रकीर्णक वर्तमान में प्राप्य नहीं हैं (यद्यपि उनके नाम यत्र-तत्र मिलते हैं) उन्हें दर्शाया गया है और शेष क्रमांक 49 से लेकर 78 तक वे 30 प्रकीर्णक हैं जो अभी उपलब्ध-मान्य हैं और वे ही हमारे इस लेख का मुख्य प्रतिपाद्य विषय हैं / हमने प्रकीर्णकों के इन दस-दस के तीन जोड़ों को (क्रमांक ४९से ५८को)A-१ सेA-१०, (क्रमांक ५९से 68 को)B -१से B -10 और (क्रमांक.६९ से 78 को)-१सेc -10, ऐसा अंकित कर दिया है / सूची में प्रकीर्णकों के नाम, ग्रंथकार (जहाँ ज्ञात हैं), विकल्प व अपरनाम, गाथाओं व ग्रंथान में परिमाण, कालिक है या उत्कालिक, कहाँ उनका उल्लेख है ऐसे प्रमाण, संक्षिप्त विषयवस्तु, मुद्रित है या अमुद्रित, प्रकाशन की जानकारी, इन पर रचा गया व्याख्या साहित्य (वृत्ति, टब्बा, टिप्पणक, विषमपदपर्याय, अवचूरि, बालावबोध अनुवाद, संस्कृत छाया आदि) इत्यादि सूचना देने का प्रयत्न किया है / हमारा विनम्र अनुरोध है कि इस सूची को प्रारंभिक रूप में ही अंगीकार करें क्योंकि प्रकाशित साहित्य के स्वाध्याय से, हस्तलिखित ग्रन्थ भंडारों की खोज से, शोध छात्रों द्वारा अनुसंधान व अन्वेषण से, विद्वानों के शास्त्रार्थ विचार-विमर्श व गहन अध्ययन से एवं नाम साम्य व अन्य कई कारणों से भविष्य में इस सूची का संशोधन, परिवर्तन एवं परिवर्द्धन अपरिहार्य है। उदाहरण स्वरूप क्रमांक 43 वियाह (व्यवहार/विवाह) चूलिका नामक प्रविष्टि विनयचंद्र ज्ञानभंडार जयपुर और हेमचन्द्राचार्य ज्ञानमंदिर, पाटण में मिलती है जो चन्द्रगुप्त के 16 स्वप्नों के बारे में है / जैसलमेर भंडार में भी इस बारे में ताडपत्रीय प्राचीन प्रति है / इस सबका पूरा अन्वेषण होने पर सही निष्कर्ष निकाला जा सकता है / शोध की ऐसी प्रक्रिया सतत चालू ही रहेगी। तीस प्रकीर्णकों में से प्रत्येक की उल्लेखनीय विशेषता का संक्षिप्त निरूपण अभीष्ट जान पड़ता है A-1 - आतुरप्रत्याख्यान-महावीर जैन विद्यालय, बम्बई वाले संस्करण में इस नाम के तीन भित्र-भित्र पाठ दिये गये हैं और दूसरे अन्य प्रकीर्णकों में भी इस नाम के द्वार मिलते हैं। इनमें 70 गाथा व गद्य की एक रचना वीरभद्र की है और दो अन्य रचनाएँ अज्ञात
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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