________________ 58 : डॉ० अशोक कुमार सिंह एवं डॉ० सुरेश सिसोदिया तिगिछि पर्वत की दक्षिण दिशा की ओर चमरचंचा राजधानी कही गई है / इस राजधानी का विस्तार एक लाख योजन तथा परिधि तीन लाख योजन मानी गई है / साथ ही यह भी. माना गया है कि यह राजधानी भीतर से चौरस और बाहर से वर्तुलाकार है आगे की गाथाओं में चमरचंचा राजधानी के स्वर्णमय प्राकारों, दरवाजों, राजधानी के प्रवेश मार्गों तथा देवविमानों का विस्तार परिमाण उल्लिखित है / 12 ___इसके पश्चात् चमरचंचा राजधानी के प्रासाद की पूर्व-उत्तर दिशा में सुधर्मासभा मानी गई है। तत्पश्चात् चैत्यगृह, उपपातसभा, ह्रद, अभिषेक सभा, अलंकार सभा और व्यवसाय सभा का वर्णन किया गया है / सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में आठ योजन ऊँचे तथा चार योजन चौड़े तीन द्वार माने गये हैं। उन द्वारों के आगे मुखमण्डप, उनमें प्रेक्षागृह और प्रेक्षागृहों में अक्षवाटक आसन होना माना गया है / प्रेक्षागृहों के आगे स्तूप तथा उन स्तूपों की चारों दिशाओं में एक-एक पीठिका है। प्रत्येक पीठिका पर एक-एक जिनप्रतिमा मानी गई है / स्तूपों के आगे की पीठिकाओं के ऊपर महेन्द्रध्वज तथा उनके आगे नंदा पुष्करिणियाँ मानी गई हैं तथा यह कहा गया है कि यही वर्णन जिनमन्दिरों तथा शेष बची हुई सभाओं का भी है, किन्तु जो कुछ भित्रता है उसको आगे की गाथाओं में कहा गया है / ग्रन्थानुसार बहुमध्य भाग में चबूतरा, चबूतरे पर मानवक चैत्य स्तम्भ, मानवक चैत्य स्तम्भ पर फलकें, फलकों पर खूटियाँ, खूटियों पर लटके हुए वज्रमय सीकें, सीकों में डिब्बे तथा उन डिब्बों में जिनभगवान की अस्थियाँ मानी गई हैं / 13, __मानवक चैत्य स्तम्भ की पूर्व दिशा में आसन, पश्चिम दिशा में शय्या, शय्या की उत्तर दिशा में इन्द्रध्वज तथा इन्द्रध्वज की पश्चिम दिशा में चौप्पाल नामक शस्त्र भण्डार माना गया है तथा कहा है कि वहाँ स्फटिक मणियों एवं शस्त्रों का खजाना रखा हुआ है।१४ ग्रन्थ में जिनमंदिर और जिनप्रतिमाओं का विवेचन करते हुए यह भी कहा है कि जिनमंदिर में जिनदेव की एक सौ आठ प्रतिमाओं, प्रत्येक प्रतिमा के आगे एक-एक घण्टा तथा प्रत्येक प्रतिमा के दोनों पार्श्व में दो-दो चँवरधारी प्रतिमाएँ मानी गयी हैं। शेष सभाओं में भी पीठिका, आसन, शय्या, मुखमण्डप, प्रेक्षागृह, हृद, स्तूप, चैत्य-स्तम्भ, ध्वज एवं चैत्य वृक्षों आदि का यही वर्णन निरूपित किया गया है / 15 .. ग्रन्थ के अनुसार चमरचंचा राजधानी की उत्तर दिशा में अरुणोदक समुद्र में पाँच आवास हैं / आगे सोमनसा, सुसीमा तथा सोमयमा नामक तीन राजधानियाँ और उनका परिमाण बललाया गया है / यह भी कहा गया है कि वहाँ वरुणदेव के चौदह हजार तथा नलदेव के सोलह हजार आवास हैं / इन राजधानियों के बाहरी वर्तुल पर सैनिकों और अंगरक्षकों के आवास माने गये हैं।१६ जम्बूद्वीप में दो, मानुषोत्तर पर्वत में चार तथा अरुण समुद्र में देवों के छ: आवास माने गये हैं तथा कहा गया है कि उन आवासों में ही उन देवों की उत्पत्ति होती है / असुरकुमारों, नागकुमारों एवं उदधिकुमारों के आवास समुद्र में माने गये हैं और उन्हीं में उनकी उत्पत्ति होती है / इसीप्रकार द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, अग्निकुमारों तथा