________________ तित्थोगाली प्रकीर्णक और प्राचीन जैन इतिहास * पं० कन्हैयालाल दक जैन आगम साहित्य अंगप्रविष्ट तथा अंगबाह्य इन दो विभागों में विभाजित किया जाता है / अंगप्रविष्ट में दृष्टिवाद सहित बारह अंगों का आविर्भाव होता है और अंगबाह्य में श्रुतकेवलियों तथा पूर्वधर स्थविरों की रचनाओं का समावेश होता है / नन्दीसूत्र में अंगबाह्य आगम साहित्य के दो भेद किये गये हैं- 1. आवश्यक तथा 2. आवश्यक-व्यतिरिक्त / आवश्यक को छः भेदों में विभक्त करके आवश्यक व्यतिरिक्त के कालिक तथा उत्कालिक ये दो भेद किये गये हैं / कालिक ग्रन्थों में उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कन्धादि 33 आगम ग्रन्थों को ग्रहण किया गया है और उत्कालिक में दशवैकालिक, औपपातिक, राजप्रश्नीय, प्रज्ञापना आदि उपांगों तथा अनेक प्रकीर्णक' ग्रन्थों को ग्रहण किया गया है। __ 'प्रकीर्णक' जैन साहित्य का एक विशेष प्रकार का पारिभाषिक शब्द है, जिसका सामान्य अर्थ है - 'मुक्तक वर्णन' / आचार्य आत्माराम जी ने प्रकीर्णक की व्याख्या निम्न प्रकार से की है-अरिहन्त के उपदिष्ट श्रुतों के आधार पर श्रमण निर्ग्रन्थ भक्तिभावना तथा श्रद्धावश मूलभावना से दूर न रहते हुए जिन ग्रन्थों का निर्माण करते हैं, उन्हें 'प्रकीर्णक' कहते हैं। भगवान ऋषभदेव से लेकर श्रमण भगवान महावीर तक जितने भी विद्वान स्थविर साधु हुए हैं, उन्होंने श्रुतों के अनुसार अपने बुद्धि कौशल से ज्ञान को जन-साधारण तक पहुँचाने की दृष्टि से तथा कर्म-निर्जरा के उद्देश्य से प्रकीर्णकों की रचना की है / प्रकीर्णकों की रचना करने का दूसरा उद्देश्य यह भी समझा जा सकता हैं कि इनसे सर्व साधारणजन आसानी से धर्म की ओर उन्मुख हो सकें और वे जैन तत्त्वज्ञान के गूढ़तम रहस्य को जानने की क्षमता प्राप्त कर सकें / महावीर के तीर्थ में साधुओं की संख्या चौदह हजार मानी गई है, इसलिये उनके तीर्थ में प्रकीर्णकों की संख्या भी चौदह हजार ही मानी गई है / लेकिन वर्तमान में प्रकीर्णकों की संख्या दस मानी गई है और अन्य अपेक्षा से यह संख्या 22 भी है। इनमें एक प्रकीर्णक है-तित्थोगाली' / प्रस्तुत प्रसंग में हम तित्थोगाली में वर्णित प्राचीन जैन इतिहास पर संक्षिप्त चर्चा करेंगे / 'तित्थोगाली' प्रकीर्णक का उल्लेख व्यवहारभाष्य में प्राप्त होता है, इससे इसकी प्राचीनता का सहज में अनुमान लगाया जा सकता है / इस प्रकीर्णक में नन्दीसूत्र, आवश्यकनियुक्ति तथा सूर्यप्रज्ञप्ति आदि आगमों की गाथाएँ भी दृष्टिगोचर होती हैं / इस प्रकीर्णक में कल्कि राजा की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है और इस वर्णन के साथ अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी काल तथा उसके छः-छः आरों का, प्रसंगोपरान्त ऋषभदेव स्वामी का चरित्र वर्णन, दस क्षेत्रों में एक ही समय में होने वाले तीर्थङ्करों का वर्णन, चौबीस तीर्थङ्करों के पूर्वभवों एवं उनके कल्याणक तथा चक्रवर्ती एवं बलदेव के उल्लेख उपलब्ध हैं / इसके अतिरिक्त पालक, मरूक, पुष्पमित्र, बलमित्र, भानुमित्र, नभसेन और गर्दभराजा