________________ प्राचीनतम प्रकीर्णक : ऋषिभाषित : 221 इसिभासियाइं पणयालीसं अज्झयणाई कालियाई, तेसु दिण 45 निविएहिं अंणागाढजोगो / अण्णे भणंति उत्तराज्झयणेसु चेव एयाइं अंतब्भवंति / -विधिमार्गप्रपा, पृ० 58 देविंदत्थयमाई पइण्णगा होति इगिगनिविएण / इसिभासिय अज्झयणा आयंबिलकालतिगसज्झा // 61 / / केसिं चि मए अंतब्भवंति एयाइं उत्तराज्झयणे / पणयालीस दिणेहिं केसिं वि जोगो अणागाढो // 62 / / -विधिमार्गप्रपा, पृ० 62 6. (अ) कालियसुयं च इसिभासियाई ताइओ य सूरपण्णत्ती / सव्वो य दिट्ठिवाओ चउत्थओ होई अणुओगो / / 124 / / (मू० भा०) तथा ऋषिभाषितानि उत्तराध्ययनादीनि 'तृतीयश्च' कालानयोगः, -आवश्यक हरिभद्रीय वृत्ति, पृ० 206 (ब) आवस्सगस्स दसवेकालिअस्स तह उत्तराज्झमायारे / सयगडे निज्जत्तिं वच्छामि तहा दसाणं च / / कप्पस्स य निज्जुत्तिं ववहारस्सेव परमणिउणस्स। सूरिअपण्णत्तीए वुच्छं इसिभासिआणं च।। -आवश्यकनियुक्ति, गाथा 84-85 पण्हवागरणदसाणं दस अज्झयणा पत्रता, तंजहा-उवमा, संखा, इसिभासियाई, आयरियभासिताई, महावीरभासिताई, खोमपसिणाई, कोमलपसिणाई अद्दागपसिणाई, अंगुट्ठपसिणाई, बाहुपसिणाई / -ठाणांगसुत्त : प्रका० महावीर जैन विद्यालय, दसमं अजझयणं दसट्ठाणं, पृ० 311 चोत्तालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुताभासिया पण्णत्ता / -समवायांगसूत्र-४४ सूत्रकृतांगसूत्र 1/3/4/1-4 वही, 2/6/1-3, 7, 9 भगवती, शतक 15 उपासकदशांग, अध्याय 6 एवं 7 (अ) सूत्तनिपात्त 32, सभियसुत्त (ब) दीघनिकाय, सामञफलसुत्त 14. सुत्तनिपात 32, सभियसुत्त . 10.. 13.