________________ प्रकीर्णक और शौरसेनी आगम साहित्य : 131 जावइयाइं दुक्खाइं होति चउगइगयस्स जीवस्स / सव्वाई ताई हिंसाफलाई निउणं वियाणाहि // (भत्तपरिना पइण्णयं, गाथा 94 ) जावइयाई दुखाई होति लोयम्मि चदुगदिगदाइं / सव्वाणि ताणि हिंसा फळाणि जीवस्स जाणाहि || (भगवती आराधना, गाथा 803) पाणो वि पाडिहेरं पत्तो छूढो वि सुंसुमारदहे / एगेण वि एगदिणऽज्जिएणऽहिंसावयगुणेणं // (भत्तपरिना पइण्णयं, गाथा 96) पाणो वि पाडिहेरं पत्तो छूढो वि सुंसुमारहदे / एगेण वि एक्कदिवसक्कदेण हिंसावदगुणेण || - (भगवती आराधना, गाथा 821) सिंगारतरंगाए विलासवेलाए जोव्वणजलाए / पहसियफेणाए मुणी नारिनईए न वुझंति / / .. (भत्तपरिना पइण्णयं, गाथा 129) सिंगारतरंगाए विलासवेलाए जोवणजळाए / विहसियफेणाए मुणि णारणईए ण उन्भंति / / (भगवती आराधना, गाथा 1111) * संगो महाभयं जं विहेडिओ सावरण संतेणं / पुत्तेण हिए अथम्मि मणिवई कुंचिएण जहा. || (भत्तपरिना पइण्णय, गाथा 133) संगो महाभयं जं विहेडिदो सावरण संतेण / पुत्तेण चेव अत्थे हिदम्मि णिहिदेल्लए साह / / (भगवती आराधना, गाथा 1130) सव्वग्गंथविमुक्को सीईभूओ पसंतचित्तो य / जं पावइ मुत्तिसुहं न. चक्कवट्टी वि तं लहइ / / (भत्तपरित्रा पइण्णयं, गाथा 134) सव्वग्गंथविमुक्को सीदीभूदो पसण्णचित्तो य / जं पावइ पीइसुहं ण चक्कवट्टी वि तं लहदि / / (भगवती आराधना, गाथा 1182) देसिक्कदेसविरओ सम्मट्ठिी मरिज्ज जो जीवो / तं होइ बालपंडियमरणं जिणसासणे भणियं / / ( आउरपच्चक्खाण पइण्णयं, गाथा 1)