________________ 130 : डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय विज्जा वि भत्तिवंतस्स सिद्धिमुवयादि होदि सफला य / किह पुण णिव्वुदिवीजं सिज्झिहदि अभत्तिमंतस्स || (भगवती आराधना, गाथा 652) तेसिं आराहणनायगाण न करिज्ज जो नरो भत्तिं / धणियं पि उज्जमंतो सालिं सो ऊसरे ववइ / / (भत्तपरित्रा पइण्णयं, गाथा 73) तेसिं आराहणणायगाण ण करेज्ज जो णरो भत्तिं / धत्तिं पि संजमं तो सालिं सो ऊसरे ववदि / (भगवती आराधना, गाथा 753) विज्जा जहा पिसायं सुठ्ठवउत्ता करेइ पुरिसवसं / नाण हिययपिसायं सुठुवउत्तं तह करेइ / / (भत्तपरित्रा पइण्णयं, गाथा 82) विज्जा जहा पिसायं सुठ्ठवउत्ता करेदि पुरिसवसं / णाणं हिदयपिसायं सुट्ठवउत्तं तह करेदि || (भगवती आराधना, गाथा 764) उवसमइ किण्हसप्पो जह मंतेण विहिणा पउत्तेणं / तह हिययकिण्हसप्पो सुठुवउत्तेण णाणेणं // (भत्तपरित्रा पइण्णयं, गाथा 83 ) उवसमइ किण्हसप्पो जह मंतेण विधिणा पउत्तेण / / तह हिदयकिण्हसप्पा सुठुवउत्तेण णाणेण / / (भगवती आराधना, गाथा 765) सूई जहा ससुत्ता न नस्सई कयवरम्मि पडिया वि / जीवो वि तह ससुत्तो न नस्सई गओ वि संसारे / (भत्तपरित्रा पइण्णयं, गाथा 86) सूई जहा ससुत्ता ण णस्सदि दु पमाददोसेण / एवं ससुत्तपुरिसो ण णस्सदि तहा पमाददोसेण // (मूलाचार, गाथा 1/80) जीववहो अप्पवहो, जीवदया अप्पणो दया होइ / ता सव्वजीवहिंसा परिचत्ता अत्तकामेहिं / / - (भत्तपरिना पइण्णयं, गाथा 93) जीववहो अप्पवहो जीवदया होइ अप्पणो दया / / विसकंटवो व्व हिंसा परिहिदव्वा तदो होदि / / (भगवती आराधना, गाथा 797)