________________ 118 : डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय सूई जहा ससुत्ता ण णस्सदि दु पमाददोसेण / एवं ससुत्तपुरिसो ण णस्सदि तहा पमाददोसेण / / (मूलाचार, गाथा 973) पुरिसो वि जो ससुत्तो ण विणासइ सो गओ वि संसारे / सच्चे दण पच्चक्खं णासदि तं सो अदिस्समाणो वि / / (सूत्रपाहुड, गाथा 4) सूई जहा असुत्ता नासइ सुत्ते अदिस्समाणम्मि / . . . जीवो तहा असुत्तो नासई मिच्छत्तसंजुत्तो / / (चंदावेज्झयंपइण्णयं, गाथा 84) सुत्तं हि जाणमाणो भवस्स भवणासणं च सो कुणदि / सूई जहा असुत्ता णासदि सत्ते सहा णो वि / / (सूत्रपाहुड, गाथा 3.) बारसविहम्मि वि तवे सब्भिंतर-बाहिरे जिणक्खाए / न वि अस्थि न वि य होही सज्झायसमं तवोकम्मं / / / (चंदावेज्झयंपइण्णयं, गाथा 89) बारसविधिह्मि य तवे सब्भंतरबाहिरे कुसलदिढे / ण वि अत्थि ण वि य होहिदि सज्झायसमं तवोकम्म।। (भगवती आराधना, गाथा 106) बारसविधिलि य तवे सब्भंतरबाहिरे कुसलदिठे / ण वि अस्थि ण वि य होहिदि सज्झायसमं तवोकम्मं / / (मूलाचार, गाथा 972) एक्कम्मि वि जम्मि पए संवेगं वीयरागमग्गम्मि / वच्चइ नरो अभिक्खं तं मरणंते न मोत्तव्वं / / (चंदावेज्झयंपइण्णयं, गाथा 94 ) एक्कम्मि व जम्मि पदे संवेगं वीदरागमग्गम्मि। गच्छदि णरो अभिक्खं तं मरणंते ण मोत्तव्वं / / (भगवती आराधना, गाथा 774 ) आराहणोवउत्तो सम्म काऊण सुविहिओ कालं / उक्कोसं तिणि भवे गंतूण लभेज्ज निव्वाणं // (चंदावेज्झयंपइण्णयं, गाथा 98) आराहण उवजुत्तो कालं काऊण सुविहिओ सम्मं / उक्कस्सं तिण्णि भवे गंतूण य लहइ निव्वाणं / / (मूलाचार, गाथा 97)