________________ प्रकीर्णक-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा 99 जिन दोषों की गर्दा करता है, वे हैं- सात भय, आठ मद, तीन गारव, तीन शल्य. चार कषाय. मिथ्यात्व, असंयम और ममत्व / 46 सात प्रकार के भयों में इहलोक भय, परलोकभय. आदान भय, अकस्मात भय, अपयश भय, आजीविका भय और मरण भय हैं / समाधिमरण का साधक समस्त भयों को जीतकर निर्भय हो जाता है / मद (घमंड) आठ प्रकार का है-जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपमद, लाभमद, श्रुतमद और ऐश्वर्य मद / गारव तीन हैं-ऋद्भिगारव, रस गारव और साता गारव / इन तीनों की गुरुता को समाधिमरण का इच्छुक साधक त्याग देता है / तीन शल्यों में माया शल्य, मिथ्यादर्शन शल्य एवं निदान शल्य की गणना होती है / ये तीनों शल्य त्यागकर साधक निःशल्य हो जाता है / साधना में ये तीनों कांटे की तरह बाधक हैं / क्रोध, मान, माया एवं लोभ कषाय के त्याग का प्रयास तब तक चलता रहता है जब तक वीतराग अवस्था प्राप्त न हो जाय। मिथ्यात्व, असंयम एवं ममत्व का त्याग किए बिना भी साधना लक्ष्य की ओर नहीं बढ़ती है / मिथ्यात्व का त्याग तो सबसे अधिक महत्त्व रखता है क्योंकि इसको त्यागे बिना किसी भी दोष का त्याग सर्वांश में नहीं हो सकता / असंयम अर्थात् अविरति का त्याग भी ऐसे साधक के लिए आवश्यक है / हिंसा, असत्य आदि से वह पूर्णतः विरत होता है। अन्त में वह अपने शरीर आदि के ममत्व का भी त्याग कर देता है।४७ आत्मा के निकट पहुँचने अथवा आत्मा में रमण करते हुए देहत्याग करने का यही तरीका है / 48 आत्मालोचन में अपने दोषों की निन्दा एवं गर्दा करके उनसे प्रतिक्रमण भी किया जाता है, यथा मूलगुणे उत्तरगणे जे मे नाराहिया पमाएणं / ... तमहं सव्वं निंदे पडिक्कमे आगमिस्साणं / / 49 प्रमाद के कारण मूलगुण एवं उत्तरगुणों की आराधना न की गई हो तो मैं उनकी निन्दा करता हूँ तथा भावी दोषों से भी प्रतिक्रमण करता हूँ | आहार आदि चार संज्ञाओं, तैंतीस प्रकार की आशातनाओं तथा राग एवं द्वेष की गर्दा का भी उल्लेख मिलता है / ... आलोचना गुरु के समक्ष भी की जाती है / गुरु के समक्ष समाधिमरण का इच्छुक साधक मायामृषावाद को छोड़कर उसीप्रकार सरलता पूर्वक कार्य एवं अकार्य को प्रकट कर देता है जिसप्रकार कि एक बालक कार्य एवं अकार्य का विचार किए बिना सरलतापूर्वक बात कह देता है / 50 3. व्रताधान दोषों के त्याग के साथ महाव्रतों का पुनः आधान किया जाता है। श्रावक अणुव्रतों. गुणव्रतों एवं शिक्षाव्रतों को ग्रहण करता है / 51 सम्यक्त्व सामायिक, श्रुत सामायिक तथा सर्वविरति रूप त्रिविध सामायिक को बिना आगार के वह स्वीकार करता है / 52 व्रतों का यह ग्रहण गुरु की साक्षी में भी किया जाता है /