________________ प्रकीर्णक-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा : 97 समाधिमरण का फल "भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक में समाधिमरण करते समय चार बातें प्रार्थनीय मानी गई हैं- 1. दुःखक्षय, 2. कर्मक्षय, 3. समाधिमरण, 4. बोधिलाभ / समाधिमरण से मरने वाला उस जीवन में आत्मा की असीम शक्ति से तो साक्षात्कार करता ही है, किन्तु वह उसी भव में या 3-4 भवों में अथवा अधिकतम 7-8 भवों में अवश्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है / समाधिमरण के सोपान समाधिमरण के यद्यपि भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी एवं पादपोपगमन-ये तीन भेद हैं जो उस मरण की विशेषताओं को ही निरूपित करते हैं, किन्तु समाधिमरण की प्रक्रिया के कुछ सामान्य सोपान भी हैं, जिन्हें जानना अत्यन्त आवश्यक है / महाप्रत्याख्यान एवं आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक में पादपोपगमन मरण के प्रसंग में पंडितमरण के चार आलम्बन कहे गए हैं-१. अनशन, 2. पादपोपगमन, 3. ध्यान और 4. भावना / 37 अभयदेवसूरि विरचित आराधना प्रकरण में मरणविधि के छः द्वार निरूपित हैं-१. आलोचना, 2. व्रतों का उच्चारण, 3. क्षमापना, 4. अनशन, 5. शुभ भावना और 6. नमस्कार भावना।३८ नन्दन मुनि के द्वारा आराधित आराधना के 6 प्रकार ये हैं-१. दुष्कार्यों की गर्दा, 2. जीवों से क्षमायाचना, 3. शुभ भावना 4. चतुःशरण ग्रहण, 5. पञ्चपरमेष्ठि नमस्कार और . 6. अनशन / 39 पर्यन्ताराधना में आराधना के 24 द्वार दिए गए हैं, जो आराधना का क्रमिक स्वरूप प्रस्तुत करते हैं, वे 24 द्वार हैं- 1. संलेखना द्वार, 2. स्थान द्वार (ध्यानानुकूल स्थान का चयन), 3. विकटना (अतिचारों की आलोचना), 4. सम्यक्त्व द्वार, . 5. अणुव्रत द्वार, 6. गुणव्रत द्वार (श्रावक के लिए), 7. पापस्थान द्वार, 8. सागार द्वार, 9. चतुःशरण गमन द्वार, 10. दुष्कृत गर्दा द्वार, 11. सुकृतानुमोदना द्वार, 12. विषय द्वार, 13. संघादि से क्षमा, 14. चतुर्गति के जीवों से क्षमा द्वार, 15. चैत्य नमन द्वार, 16. अनशन द्वार, 17. अनुशिष्टि द्वार (गुरु द्वारा शिक्षा), 18. भावना द्वार (द्वादश भावनाएं), 19. कवच द्वार (स्थिरीकरणार्थ), 20. नमस्कार द्वार, 21. शुभध्यान द्वार, 22. निदान द्वार, 23. अतिचारनाश द्वार और 24. फलद्वार / इसप्रकार पर्यन्ताराधना में मरणविधि का एक व्यवस्थित क्रम निरूपित है / एक आचार्य (अज्ञात नाम) की आराधना पताका में उत्तम मरणविधि के 32 द्वार दिए हैं।४° उन्होंने अनुशिष्टि द्वार के 17 प्रतिद्वार दिए हैं तथा निर्यामक, असंविग्न, निर्जरणा, द्रव्यदान, स्वजनक्षमा, जिनवरादिक्षमा, शुक्रस्तव और कायोत्सर्ग द्वार-नए जोड़े हैं / वीरभद्राचार्य ने अपनी आराधना पताका में भक्तप्रत्याख्यान आदि त्रिविध मरणों का निरूपण करते हुए प्रसंगानुसार द्वारों का निरूपण किया है। . इन आराधनाओं की अपेक्षा प्राचीन प्रकीर्णकों में मरणविधि तो निरूपित है किन्तु उसे विभिन्न द्वारों में विभक्त नहीं किया गया है / आतुरप्रत्याख्यान नाम के तीन प्रकीर्णक हैं 41 किन्तु एक प्रकीर्णक में ही चार आलम्बन दिए गए हैं और वे भी पादपोपगमन मरण के सम्बन्ध में / इसका अर्थ यह है कि आराधनाओं की रचना प्रकीर्णकों के पश्चात हुई