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________________ - 8 - हम उपरोक्त तीनों आलेखों के लेखकों एवं प्रकाशकों के आभारी हैं / वस्तुतः ये आलेख प्रकीर्णक साहित्य के मूल्य और महत्त्व को अंग्रेजी भाषा के माध्यम से प्रस्तुत करने . की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कहे जा सकते हैं / इसी क्रम में हम उन सभी विद्वानों के प्रति भी आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने इस संगोष्ठी में पठित अपने विद्वत्तापूर्ण आलेख हमें प्रकाशित करने हेतु प्रदान किये / इन आलेखों पर संगोष्ठी में जो चर्चाएँ हुईं थीं तथा प्रकीर्णक साहित्य संबंधी जो नवीन जानकारियाँ उपलब्ध हुई थीं उनके सन्दर्भ में इनमें अपेक्षित संशोधन किये गये हैं तथा सम्पादकीय टिप्पणियाँ देकर उन तथ्यों को रेखांकित भी किया गया है / प्रस्तुत संगोष्ठी के प्रेरणास्रोत श्री सरदारमलजी कांकरिया के हम विशेष आभारी हैं जिन्होंने न केवल स्वयं उपस्थित होकर इस संगोष्ठी को सफल बनाया वरन इस संगोष्ठी में पठित लेखों को प्रकाशित कराने हेतु कलकत्ता निवासी श्री धनराजजी बाँठिया को प्रेरित भी किया। संस्थान की मानद सह-निदेशिका डॉ० सुषमा सिंघवी ने इस संगोष्ठी संबंधी सभी कार्यों को मनोयोगपूर्वक सम्पन्न करवाया, एतदर्थ हम उनके प्रति भी अपना आभार व्यक्त करते हैं / इनके अतरिक्त श्री संग्रामसिंहजी हिरण, श्री वीरेन्द्रसिंहजी लोढ़ा, श्री हिम्मतसिंहजी नाहर एवं श्री मानमलजी कुदाल आदि का संगोष्ठी को सफल बनाने में अपेक्षित सहयोग मिला, एतदर्थ हम आप सब के प्रति भी अपना आभार ज्ञापित करते हैं। संस्थान के परम संरक्षक श्री गणपतराजजी बोहरा एवं अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ के पदाधिकारीगण श्री अनुपचन्दजी सेठिया तथा श्री इन्दरचन्दजी बैद आदि संगोष्ठी के सभी सत्रों में बराबर उपस्थित रहे, एतदर्थ हम उनके आभारी हैं। हमारे लिए यह प्रसन्नता का विषय है कि प्रकीर्णक साहित्य के मूल्य और महत्त्व को उजागर करने वाले इन आलेखों का संग्रह हम "प्रकीर्णक साहित्य : मनन और मीमांसा" के रूप में प्रकाशित कर पाठकों को अर्पित कर रहे हैं / प्रस्तुत कृति के मूल्य और महत्त्व का मूल्यांकन करना तो पाठकों का ही कार्य है किन्तु यदि इस कृति के माध्यम से प्रकीर्णक साहित्य के अध्ययन और स्वाध्याय की प्रवृत्ति विकसित होती है तो हम अपना प्रयास सार्थक समझेंगे। . अन्त में पुनः उन सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं जो संगोष्ठी आयोजित करने, विद्वानों से आलेख प्राप्त करने तथा आलेखों को प्रकाशित करने में सहभागी बने हैं। सागरमल जैन सुरेश सिसोदिया
SR No.004282
Book TitlePrakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Suresh Sisodiya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1995
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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