________________ विकास को ग्राम, ग्राम-तन्त्र और कृषि से जोड़ना आवश्यक है। भगवान महावीर का अहिंसा और समता का सिद्धान्त विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था की स्थापना करता है। वह सह-अस्तित्व पर आधारित है। उसमें सबका हित सन्निहित है। ऐसा लगता है जैसे मानव एक इकाई विकास करता है तो दो या दो से अधिक इकाई विनाश! पर्यावरण, समता समाज-रचना और मानवीय-मूल्यों की दृष्टि से देखा जाय तो वर्तमान की विकास की अवधारणा अत्यन्त महंगी, खर्चीली और घाटे का सौदा ही सिद्ध हुई है। पूरे संसार में हिंसा और असंयम के दुख फैले हुए हैं। एक तरफ गगनचुम्बी अट्टालिकाएँ हैं, दूसरी ओर दुर्गन्धयुक्त कच्ची बस्तियाँ हैं। गरीबी-अमीरी तो हर कालखण्ड में रही है, परन्तु मानव-बस्तियों की ऐसी विद्रूपताएँ सम्भवतः पहले कभी नहीं थी। औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, पर्यावरण प्रदूषण से अनेक दूसरी समस्याएँ खड़ी हुई हैं। बढ़ती आबादी, उग्रवाद, आतंकवाद जैसी समस्याएँ दुनिया के अमन चैन में बाधक बनी हुई हैं। जिनके समाधान के लिए विचार-विमर्श तो खूब हो रहा है, परन्तु समस्याओं के मूल तक जाने के लिए कोई तैयार नहीं अथवा बुनियादी तरीकों से समस्याओं का समाधान नहीं किया जा रहा है। शान्ति के सम्मेलनों से, कष्ट माँ के ना कटेंगे। अहिंसा की हवाओं से, प्रलय के बादल छंटेंगे। तुलना और निष्पत्ति आगमों में वर्णित जीवन-शैली मानव, मानवता और दुनिया को बचाने के लिए बुनियादी समाधान प्रस्तुत करती हैं। वह एक मानवीय अर्थशास्त्र प्रस्तुत करती है, जो पूंजीवाद और समाजवाद, दोनों ही के दोषों से मुक्त है। पूंजीवादी, साम्यवादी और मानवीय या अहिंसा के अर्थशास्त्र में मौलिक अन्तर है, जिसे निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा रहा है - 1. दर्शन : पूंजीवाद और साम्यवाद दोनों भौतिकवाद पर खड़े हैं। जबकि अहिंसा का अर्थशास्त्र एकीकृत मानवीयता पर आधारित है। . 2. उद्देश्य : पूंजीवाद में वैयक्तिक अमीरी बढ़ती है और साम्यवाद में राज्य की - शक्ति; जबकि अहिंसा के अर्थशास्त्र में पुरुषार्थ चतुष्टय की सन्तुलित साधना की जाती है। (355)