________________ 20. धीरे मुहुत्तमवि णो पमायए। - आचारांग 1/2/1/10 21. आचारांग 1/5/2 22. प्रश्नव्यकरण 1/3 एवं ज्ञानार्णव 128 23. जैन, प्रेम सुमन (डॉ.) 'अपरिग्रह : व्यक्ति और समाज के सन्दर्भ में' जिनवाणी अपरिग्रह विशेषांक पृ.-255 24. कयाणं अहं अप्प वा बहुं वा परिग्गहं परिच्चइस्सामि। स्थानांग सूत्र 3 व 4 25. भगवती आराधना 1118-1119 26. भगवती आराधना 1168 27. 'जिनवाणी' अपरिग्रह विशेषांक पृः-113 पर उद्धत। 28. नानेश, आचार्य 'समता दर्शन और व्यवहार' पृ.- 14 29. महाप्रज्ञ, आचार्य -महावीर का अर्थशास्त्र' पृ.- 110-111 30. अमर मुनि, उपाध्याय 'अपरिग्रह दर्शन' पृ.-175 31. भार्गव, दयानन्द (डॉ.) 'अपरिग्रह की आधुनिक सन्दर्भ में प्रासंगिकता' : पृ.-15 (315)