________________ भगवान महावीर कहते हैं - कोई वस्तु सचेतन हो या अचेतन, कम कीमत की हो या अधिक कीमत की, उसे उसके मालिक या धारक की आज्ञा के बगैर नहीं लेना चाहिये। महात्मा गांधी कहते हैं कि अपरिग्रह को अस्तेय व्रत से सम्बन्धित समझना चाहिये। वास्तव में चुराया हुआ न होने के बावजूद अनावश्यक संग्रह चोरी जैसा माल हो जाता है। किसी चीज का बिना आवश्यकता के संग्रह करना, चोरीतुल्य माना जाएगा। सत्यशोधक अहिंसक परिग्रह नहीं कर सकता। कर्मठता और अस्तेय खान-पान में सम्बन्ध में भी व्यक्ति अस्तेय व्रत का उल्लंघन करता है। जिस चीज की उसे जरूरत नहीं है, फिर भी उसे वह खाता है। वह अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाचढ़ा कर बताता है और अनजाने में चोर बन जाता है। अस्तेय व्रती को अपनी आवश्यकताएँ निरन्तर घटाते रहना चाहिये। संसार की अधिकतर दरिद्रता अस्तेय व्रत के भंग से हुई है। बिना परिश्रम किये अर्थप्राप्ति की आशा और किसी तरह अर्थप्राप्ति करना अस्तेय व्रत के अनुरूप नहीं है। दुनिया की कई विषमताएँ और समस्याएँ शरीर-श्रम नहीं करने से पैदा हुई हैं। इसलिए अस्तेय व्रत शरीर-परिश्रम द्वारा सम्पत्ति-निर्माण पर जोर देता है। यह व्रत सम्पन्न घरानों के व्यक्तियों को भी अच्छे कार्यों में निष्काम भाव से सक्रिय रहने की प्रेरणा देता है। जहाँ श्रम है, वहाँ सम्मान भी है और आत्म-सम्मान भी है। अप्रमाद और अस्तेय कितने ही आजीविका के साधन ऐसे हैं जिनमें शरीरिक श्रम अपेक्षाकृत कम होता है। उसमें बौद्धिक और मानसिक श्रम करना पड़ता है। बुद्धि पर अपनी जीविका चलाने वाले बुद्धिजीवियों को भी शरीरिक श्रम का महत्व समझना चाहिये। अस्तेय व्रत निष्ठापूर्वक कर्तव्यपालन पर जोर देता है। कामचोरी की वजह से अनेक कामकाज लम्बित पड़े रहते हैं। सरकारी क्षेत्र से अकर्मण्यता की शिकायतें ज्यादा मिलती है। अस्तेय व्रत की भावनाएँ भर कर सरकारी कार्यप्रणाली को चुस्त-दुरुस्त किया जा सकता है। अकर्मण्यता पाप है, अपराध है। भगवान महावीर अपने शिष्य गौतम को बार-बार कहते हैं कि क्षणमात्र का प्रमाद भी नहीं करना चाहिये। जो व्यक्ति प्रमत्त और आराम-पसन्द होता है, वह स्वयं को और दूसरों को कष्ट देने वाला होता है। उसे चहुँ ओर से भय रहता है।" इसलिए जीवन पथ पर आगे बढ़ने वाले धैर्यवान व्यक्तियों को आलस्य और (309)