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________________ असंयम और जनसंख्या के अन्तर्सम्बन्ध को अलग अर्थ देते हुए 'वाइल्ड अर्थ' पत्रिका में एल्बर्ट बार्टलेट बताते हैं कि जनसंख्या की समस्या अमरीका में है। वहाँ एक नागरिक बढ़ता है तो वह विकासशील देशों की तुलना में तीस गुना अधिक प्रकृति का दोहन करता है। विश्व के सभी देशों से अमरीका में जन्म दर न्यूनतम होने के बावजूद पर्यावरण-संरक्षण की दृष्टि से अमरीका में आबादी नियन्त्रण पहले होना चाहिये।' पर्यावरण और आर्थिक विकास का सम्बन्ध जनसंख्या में ही नहीं, संयम की संस्कृति में भी है। इसका तात्पर्य यह है कि. यदि मनुष्य भोगवादी संस्कृति में उलझे रहता है तो जनसंख्या-नियन्त्रण के सुपरिणाम प्राप्त नहीं होंगे। असंयम के परिणाम आज दुनिया में सेक्स ने बहुत ही घिनौने व्यापार का रूप ले लिया है। 26 दिसम्बर, 2004 को दक्षिणी भारत सहित एशिया के अनेक देशों में समुद्री भूकम्प 'सुनामी' ने मानव जाति पर अभूतपूर्व कहर ढाया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब डेढ़ लाख लोगों की इस त्रासदी में जान गई। लाखों लोग बेघर हो गये। सम्पत्ति के नुकसान का तो कोई हिसाब ही नहीं। जयपुर से प्रकाशित होने वाले एक आर्थिक अखबार 'नफा-नुकसान' ने इस त्रासदी के लिए देह-व्यापार के निमित्त हो रहे मर्यादाओं के उल्लंघन को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है। इस भूकम्प का केन्द्र थाइलैण्ड रहा, जिसे दुनिया की सेक्स-राजधानी' माना जाता है। देह-व्यापार के आँखें उघाड़ने वाले वीभत्स आँकड़े प्रस्तुत करते हुए अखबार लिखता है कि प्रकृति की विनाश लीला से बचने के लिए मर्यादा का पालन सबसे अहम् है। हम ग्लोबलाइजेशन के जिस युग में जी रहे हैं, उस युग में मर्यादा बहुत पीछे छूट चुकी है और हम मर्यादा से दूर भागते हुए हर पल विनाश लीला को आमंत्रित कर रहे हैं। आत्म-संयम की उपेक्षा के परिणामस्वरूप अर्थशास्त्र नीतिशास्त्र की खुल्लमखुल्ला अवहेलना करने लगा। पर्यटन व्यवसाय में स्वच्छन्द यौनाचार, फिल्मउद्योग में भद्दे तरीकों से देह-प्रदर्शन और कॉर्पोरेट जगत में विज्ञापनों में नारी-देह को वस्तु की तरह प्रदर्शित करने से मानवीयता और समाजिकता के अनेक गौरवशाली प्रतिमान ताश-पत्तों के महल की भाँति गिर रहे हैं। इससे परिवार टूट रहे हैं, समाज बिखर रहा है और अर्थशास्त्र अपने पुनीत लक्ष्यों से भटकता जा रहा है। (298)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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