SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आर्थिक खिलवाड़ है। यान्त्रिक बूचड़खानों से प्राप्त चमड़ा, हड्डी आदि वस्तुएं बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ खरीदती है। जबकि स्वाभाविक मौत से मरने वाले पशु की खाल, सींग, खुर आदि देश के गाँवों-कस्बों के लाखों लघु-कुटीर उद्योगों के आधार हैं। कत्लखानों की वजह से जनसंख्या और पशुसंख्या के अनुपात में भारी अन्तर पैदा हुआ है। इस अन्तर से अर्थव्यवस्था कई जटिल समस्याओं से घिर गई है। . जो लोग गौ-संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं, उन्हें गाय-बैल के साथसाथ अन्य पशु-पक्षियों के संरक्षण पर भी ध्यान देना चाहिये। उन्हें बूचड़खानों से प्राप्त पदार्थों के उत्पादों का भी त्याग करना चाहिये। महात्मा गांधी ने उनकी आत्मकथा में 'गौ-माता' शब्द के साथ 'भैंस-माता' और 'बकरी-माता' शब्द भी प्रयोग किये।" यह शब्द-प्रयोग क्रान्तिकारी और समाधानकारी है। गाय के दूध और दुग्ध-उत्पादों का आर्थिक महत्व है तो भैंस, बकरी, ऊँटनी आदि के दूध का भी महत्व है। जिस प्रकार गाय के दूध, गोबर, मूत्र आदि पर अनुसंधान किये जा रहे हैं, उसी प्रकार भैंस, भेड़, बकरी आदि पर भी अनुसंधान किये जाय तो उपयोगी नतीजे मिल सकते हैं। गाय के साथ-साथ अन्य पशु-पक्षियों के संरक्षण से कृषि, ग्राम-तन्त्र और ग्रामाधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाया जा सकेगा। जिसकी आज आवश्यकता है। . मांसाहार से देश को जो नुकसान हुआ, उससे अधिक बूचड़खानों से हुआ। उससे अधिक यान्त्रिक बूचड़खानों से और उससे भी अधिक नुकसान मांस-निर्यात से हुआ। मांस-निर्यात के चौंकाने वाले आंकड़े यहाँ दिये जा रहे हैं :वर्ष मांस-निर्यात चर्म-निर्यात (करोड़ रु. में) (करोड़ रु. में) शून्य 1961 80 1951 शून्य 1971 1981 390 1991 140 2600 1992 231 3128 1994 615 4000 1996 832 5117 (290)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy