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________________ कार्बोहाइड्रेट वाले खाने (अनाज, सब्जियाँ आदि) से सिद्धान्ततः सात गुना महंगा होता है। क्यों कि एक किलो प्रोटीन प्राप्त करने के लिए जानवर को सात किलो अनाज खिलाना पड़ता है। मासांहारी भोजन के पीछे प्राकृतिक संसाधनों के बहुत अधिक खर्च के कारण गरीब वर्गों के लिए मूल खाद्यान्न की कमी आती है। क्यों कि मांसाहारी प्रोटीन के लिए जानवरों को यही मूल खाद्यान्न दिये जाते हैं। साथ ही खेती की जमीन के बदले चरागाह छोड़ना होता है। पर्यावरण प्रदूषण, भुखमरी और खाद्यान्न की कमी का एक प्रमुख कारण मांसाहार है। ... कत्लखाने और अर्थतन्त्र अहिंसा की नींव पर खड़े अर्थतन्त्र के कम-से-कम सात आधारभूत तत्त्व हैं - 1. जीवन के प्रति सम्मान, 2. शोषण-मुक्त जीवन शैली, 3. सहअस्तित्व में घनीभूत आस्था, 4. परस्पर सहयोग का संकल्प, 5. व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में सादगी का अनुसरण, 6. अपव्यय पर अंकुश, और 7. गुणवत्ता पर सावधान नजर आगमों के पृष्ठ-पृष्ठ पर इन मूल्यों का जीवन्त निरूपण हुआ है। आचारांग' में कहा गया - सभी प्राणियों को अपना जीवन प्यारा है तथा सभी प्राणी जीना चाहते हैं। सुख सबको अनुकूल लगता है और दुख प्रतिकूल। जीवन सबको प्रिय है और वध अप्रिय; इसलिए कभी किसी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिये। जीवन के प्रति सम्मान की भावना को गहराई प्रदान करते हुए कहा गया है कि - जीव-वध अपना ही वध है और जीव-दया अपनी ही दया है। जहाँ जीव-वध का निषेध है, वहाँ जीवन के प्रति सम्मान के साथ-साथ सह-अस्तित्वपूर्ण, शोषण-मुक्त, संयमित व श्रेष्ठ व्यवस्था आकार लेती है। आगमसाहित्य में उन सब काम-धन्धों का स्पष्ट निषेध हैं, जो पशु-पक्षियों के वध से जुड़े हैं। पशु-पक्षियों का कत्ल देश के अर्थतन्त्र का कत्ल है। कत्लखानों ने सामाजिकता, मानवीयता, संस्कृति और पर्यावरण को करारी शिकस्त दी है। भारत के केरल राज्य में सर्वाधिक कत्लखानें हैं, आत्म-हत्या की दर भी सर्वाधिक केरल में ही है। मशीनीकरण के कारण कत्लखानों ने अत्यन्त भयानक, रौद्र और महाहिंसा के अड्डों का रूप ले लिया है। जिस पावन धरा पर जहाँ एक ओर पशु-पक्षियों को परिवार के सदस्यों की तरह पाला-पोसा जाता था, वहीं अब इन मूक भोले निरीह प्रणियों के साथ बेजान/निर्जीव वस्तु की तरह सलूक किया जाने लगा है। तात्कालिक (286)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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