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________________ परिच्छेद एक आगम : अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य परिचय और परिभाषा __जैन आगम साहित्य विश्व-साहित्य की अनमोल निधि है। विभिन्न काल-खण्डों में प्राचीन विश्व और प्राचीन भारत का दिग्दर्शन आगम साहित्य के माध्यम से सम्भव है। प्राकृत संसार की प्राचीनतम भाषा और सब भाषाओं की दादी माँ मानी जाती है। इसी भाषा में जैन आगम साहित्य निबद्ध है। आगमों में वर्णित घटनाएँ और उल्लेखित तथ्य ऐतिहासिक भी हैं और प्रागैतिहासिक भी। आगमों में वर्णित विषयों और तथ्यों को देखते हुए वर्तमान इतिहास की अवधि अत्यन्त छोटी है। आगमों में इतिहास के पार भी अनेक महत्वपूर्ण स्थापनाएँ हैं। जो चाहे ऐतिहासिक हों या न हों, सत्य और तथ्य से सीधी जुड़ी हुई हैं। वस्तुतः सिद्धान्त और जीवन-जगत के मूलभूत/सार्वकालिक नियमों का ऐतिहासिकता से कोई सह-सम्बन्ध नहीं होता है। भारतीय साहित्य के इतिहास में जैनों द्वारा लिखे विविध साहित्य की उपेक्षा होती आई है। उदाहरण के तौर पर संस्कृत साहित्य के इतिहास में जब पुराणों या महाकाव्यों पर लिखना हो, तब इतिहासकार प्रायः हिन्दू पुराणों और हिन्दू महाकाव्यों से ही सन्तोष कर लेते हैं। इतिहासकारों को इतनी फुर्सत कहाँ कि वह एक-एक ग्रन्थ पढ़े और उसका मूल्यांकन करे।' यह तथ्य है कि जैन इतिहास को इतिहासकारों ने बहुत उपेक्षित किया, मनमाने ढंग से प्रस्तुत किया और अनेकानेक महत्वपूर्ण साक्ष्यों को मिट तक दिया।यदि जैन राजाओं, गणतन्त्र प्रमुखों, सेनापतियों, सार्थवाहों, गृहस्थों आदि का विवरण इतिहासकारों ने गायब न किया होता तो सिद्ध हो जाता कि लिच्छवी, वजी आदि गणतन्त्र भगवान महावीर के अर्थशास्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार चलते थे तथा इस सम्बन्ध में और अनेक अद्भुत बातें हमारे समक्ष होती इनके अलावा भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् हजार वर्ष की अवधि में दीर्घकालीन तीन दुर्भिक्ष आये और गये। दुर्भिक्ष के विकट समय में निर्ग्रन्थ श्रमण आगम-साहित्य की वाचना, पृच्छना, परिवर्तना और अनुप्रेक्षा नहीं कर सकें। वीर निर्वाण के 160 वर्ष पश्चात् (ईस्वी सन् के पूर्व लगभग 367 में)
SR No.004281
Book TitleJain Agamo ka Arthashastriya Mulyankan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDilip Dhing
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2007
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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