________________ जाने वाले वर्ग के लिए हैं, वही उपदेश निर्धन और निम्न समझे जाने वाले वर्ग के लिए है। मानव-जाति के इतिहास में मानव और मानवता को सर्वोच्च श्रेणी पर प्रतिष्ठित करने वालों में तीर्थंकर पार्श्वनाथ और महावीर अग्रणी हैं। ___ समाज का एक वर्ग जब एक ओर देवों की पूजा-अर्चना में ही धर्म मानने लग गया और दूसरी ओर वह देवताओं को खुश करने के लिए पशु-पक्षियों की बलि, यहाँ तक मनुष्यों की बलि तक करने लग गया। ऐसे विकट हालात में जब मनुष्य और मनुष्यता को दोनों सिरों से खारिज किया जा रहा था, भगवान महावीर ने मनुष्यता की वह अलख जगाई, जिसकी रोशनी में समूची मानवता नहा उठी। उन्होंने मनुष्य को देवताओं से भी ज्यादा सामर्थ्यवान बताया और कहा - जो मनुष्य अहिंसा, संयम और तप की उत्कृष्ट आराधना करता है, देवगण भी उसे नमन करते हैं। देवता स्वयं मानव जीवन की आकांक्षा रखते हैं। मानव जीवन को अत्यन्त दुर्लभ बताते हुए उसे मूल-धन कहा है। एक तरफ अहिंसा के अनुपालन से मनुष्येत्तर प्राणियों के प्रति भी संवेदना, दूसरी तरफ देवता से भी मानव की श्रेष्ठता; महावीर ने मनुष्यता को दोनों सिरों से पुनर्स्थापित किया और मानवता की महिमा में अनेक उजले अध्याय जोड़ दिये। भगवान महावीर ने मनुष्य के सामाजिक वर्गीकरण को कर्माधारित माना, न कि जन्माधारित। उन्होंने कहा - मनुष्य कर्म से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शद्र होता है। जाति की कुछ भी विशेषता नहीं दिखाई देती है। चाण्डाल पुत्र हरिकेशी मुनि को देखो, जिनकी महाप्रभावशाली ऋद्धि है। .. वर्णाधारित जातीय अहंकार टूटने से तत्कालीन व्यवसाय और वाणिज्य पर अनुकूल असर पड़ा था। भगवान महावीर ने कर्म और व्यवसाय को छोटा या बड़ा नहीं माना, अपितु हिंसक अथवा अहिंसक माना। हिंसा और अहिंसा के आधार पर ही मानव की श्रेष्ठता और हीनता बताई गई। छोटे से छोटा काम भी, यदि वह अहिंसक है तो ग्राह्य है। इससे सामाजिक समरसता व मानवीय एकता की राह प्रशस्त होती है। छोटे-छोटे लघु, गृह और कुटीर उद्योग-धन्धों को संरक्षण मिलता है एवं उनके करने वालों का आत्म-सम्मान कायम रहता है। जिनकी अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ी भूमिका होती है। वाणिज्य और व्यवसाय के विकास में पुश्तैनी काम-धन्धों का महत्व रहा तो योग्यता के अनुसार व्यवसाय परिवर्तन का भी महत्व रहा। मानववाद ने समाज में मानवता की प्रतिष्ठा की और व्यवसाय में योग्यता की। (277)